कविवर रत्नाकर | Kavivar Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. कृष्णशंकर शुक्ल - Pt. Krishna Shanker Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[२३ 3)
परयो रण में भग दम है सफल, विचारत।
सूक भाव सा पक एफ कौ पटन निदारत ॥
देखिए इसी समाचार को सुन कर उपाध्यायगण कैसे झुँह
लटकाए हुए महाराज से निवेदन कर रहे ६ै*--
उपाध्याय गन घाइ घचछ आनन लटकाए।
मिकुटो ऊँले सर्संक धफ भ्रकुटी समशणणु॥
भरि गेंमीर स्वए भाव भूप सौं फियो निवेद्स।
गयी पथेदिव अस्व भयो भारी छितलछेदन॥
भाषों को व्यक्त फरनेवाली स्वाभाविक चेष्टाओं के सहारे
रह्ाकर जी ने कभी फ्मो बडी मारमिक कल्पनाओं की रष्टि की
है। एक-आध उदाहरण देंसिए। कृष्णचद्र ने दीन सुदामा के
आने का समाचार पाया हे । दोडते हुए द्वार पर पहुँचते हैं। अपने
प्रिय वाल्सस्रा की द्वीनाउस्था देस कर व्याबुल हो उठते हैं। करुणा
के अधिक उद्रेक से रतव्ध दो जाते हैं, मित्र का आलिंगन करने की
सुधि ही नहीं रहती । पर सुदामा कृष्ण की यह् दशा देखकर
सममले हैं कि इ होने हमें पहचाना नहीं इसीसे यह उपेक्षा भाव है ।
बस ] लौटने को प्रस्तुत दो जाते हैं+--
दीन दोन सुद्दद सुदामा की श्रवाई सुनें,
दीनबधु दद्क्ि दया खो भया पामे हें।
कहे रतनाकर सपदि अडुछाइई उठे,
भाई गुरुगेह के खनेह-झुत जागे है ॥
1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...