न थकी यात्रा | Na Thaki Yatra

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Na Thaki Yatra by शंभू विभाकर - Shambhu Vibhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आँखे अँगारो सी दहक रही है रातो जागी आखें बार बार ये किसे याद कर भर-भर आई आखें ! रही ढूढती सुनेपन मे उसको जलती आयें मुझसे जिसकी एक घडी में लडी बडी दो आखें बही समम को सरित, तटो पर रही रेत सी भाँखे तपी जून आकठ दिसम्बर अह रह पथरी आखें चुप चुप है वातास गगन भू-लता सुमन की आखें उलझी साडी जहा छुडा कर समुद्र तरेरी आर्खें छक छक छवि मधु घार पान कर मुदी खुमारी आखें बीत गया वह निमिय याद कर ढरकी मोती आखे । किन्तु हृदय मे गडे फास सी नित्य वही दा आरखें लावा भरती ऊप्ण रक्त म लजे कमल सी आखे ओर मुझे कुछ नही सूझता सिवा सिफ दो आखे मम सलाखें छूला कहा तो आह फोड लू आखजें अतस की आँखी से लेक्नि नित्य दिखेगी आखें रोम रोम मं पुव बगावत भर भर देगी आयें सत्य मृत्यु के बाद न पीछा छाडेगी व आाखे जम मरण का आजे काजर वही नशीली आखे दो एसी जाशीष दवता * खुले अवधि वी आयें हो जाए फ़िर चार कि भटवी-भटकी य दो आाखे मे थवी मात्रा 25




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