अंकों की कहानी | Ankon Ki Kahani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ankon Ki Kahani by जय नारायण कौशिक - Jai Narayan Kaushik

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about जय नारायण कौशिक - Jai Narayan Kaushik

Add Infomation AboutJai Narayan Kaushik

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
3 अर्थात्‌ दो तल्ला' (दो मज़िला), द्विवज्लक (16 कोनो का भवन) भवनों में वीतना शुरू हुआ । ननसाल से भुझे दो पलका” (दो नगीनो वाला), दो पलली” आदि आभूषण मिले। शीत से बचाने के लिए मुझे दो तही' और 'दो तारा” वस्त्र पहनने को मिले । बचपन से ही मुझे पशु-पक्षियो मे रुचि हे। 'द्विककुद' (ऊँट), 'द्विप', 'द्विपायी'-(द्विरद-द्विहा' (हाथी) पर मैने सवारी की है। 'हद्विरित' (खच्चर), 'द्विदाम्ती” (दो रस्सियों मे बाँध कर रखने योग्य दुष्ट गाय) से मुझे भय लगता हे । 'द्विक- कार' (कौवा, कोक), 'द्विरिक' (भ्रमर), 'द्विजिह' आदि “द्विजो' (पक्षी) के खिलौनों से मै खेला हे । द्िसीत्य” (दो बार हल चलाया गया) क्षेत्र की 'दोमट भूमि, से उत्पन्न 'दो फसली' भूमि की 'द्विदल' दाले मुझे भाती है। इस प्रकार के अन्न ने मेरे स्वभाव पर अच्छा अभाव डाला ह। मैं कभी 'दोचित्ता' नही रहता। 'दो-चित्ती' (व्यग्रता) मेरे से कोसो दूर हे । 'दोगली' बाते मुझे नही भाती। मैं सदा 'दो दूक' वात करने मे विश्वास रखता हैं। भत्त मैं हर 'द्विविधा' से दूर हूँ। सग्रीत, पिंगलशास्त्र, व्याकरण आदि विपयो मे मेरी रेचि है। 'द्विगूढ' (एक प्रकार का गाना) तथा 'द्विपदी' (दो चरणो की गीति) मुझे प्रिय है। ्िरेफ' (जिसमे दो 'र हो यथा-भ्रमर), 'द्वित्त' (दोहरा होने का भाव जैसे सूय्य' मे 'य' दो बार है), 'द्विविन्दु” (विस ), 'द्विकर्मका (जिस वाक्य मे दो कर्म हो), 'द्विगु' (समास का एक उपभेद), 'द्विमात्र! (जिसमे दो मात्राएँ हो, दीघ), (द्विवचन' आदि का




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now