विनध्य - हिमालय | Vindhya - Himalay

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Vindhya - Himalay by शिवमंगल सिंह - Shaivmangal Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विन्ध्य-हिमालय | 9 सबके अंतर के तार बंध हों जिससे मोफारों की श्रृंगार बही वीणा है। झपने हित जीकर कई जनम खोए हैं तुममें लय होकर जीना ही जीना है। जाने फिर कब पीड़ा में पाला जाऊँ तुम मुभे तपाकर खोटा-खरा भुना लो, मन का मोती मैं तुम्हें दिए देता हें तुम मुझे बेघकर अपना हार बना लो।




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