धम्मपदं | Dhammapadm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
217
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about त्रिपिटिकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित - Tripitkachary Bhikshu Dharmrakshit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२१२ ] अपष्यसादवग्गो [ १५
अनवाद--अममाद (८ आलस्य रहित होने ) के कारण इन्द्र ठेव-
ताओं में श्रेष्ट बना। अप्रमाठ कीं प्रशंसा करते है, और
प्रमाद की सदा निन््दा होतीं है ।
जेतवन कोई मिक्
३१-अप्पमादरतो भिक्खु पसादे भयदस्सि वा।
सञ्जोजनं श्रर्ण' थूलं डहं श्रग्गीव गच्छति ॥११॥
( अप्रमाठरतो भिक्तु प्रमाठे भयदर्शी वा।
संयोजन अणु' स्थूल दहन अग्निरिव गचछति ॥११॥)
अनुवाद--( जो / भिचु अप्रमाद में रत है, या अमाठ से भय साने-
वाला ( है ), ( वह ), आग को भाँति छोटे मोटे बंधनों को
जलाते हुए जाता है ।
ज्ेतबन ( निगम-वार्सी ) तिस्स ( थेर )
३२-अ्रप्पणादरतो भिकक्खु पसादे भयदस्सि वा ।
अभव्यों परिहारणाय निव्बारास्सेव सन्तिके ॥१ २॥
( अप्रमाठरतो भिन्नु प्रमांदे भयदर्शों वा।
अभव्य परिहाणाय निर्वाणस्थेव अंतिके ॥१२॥)
अनुवाद--( जो ) मिछ अप्रमाद से रत या श्रसादु से भय साने-
वाला हैं, उसका पतन होना सम्भव नहीं, ( वह ) निर्वाण-
के समीप है ।
२---अ्रग्रमादवर्य समाप्त
User Reviews
No Reviews | Add Yours...