धम्मपदं | Dhammapadm

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Dhampand by त्रिपिटिकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित - Tripitkachary Bhikshu Dharmrakshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१२ ] अपष्यसादवग्गो [ १५ अनवाद--अममाद (८ आलस्य रहित होने ) के कारण इन्द्र ठेव- ताओं में श्रेष्ट बना। अप्रमाठ कीं प्रशंसा करते है, और प्रमाद की सदा निन्‍्दा होतीं है । जेतवन कोई मिक् ३१-अप्पमादरतो भिक्‍खु पसादे भयदस्सि वा। सञ्जोजनं श्रर्ण' थूलं डहं श्रग्गीव गच्छति ॥११॥ ( अप्रमाठरतो भिक्तु प्रमाठे भयदर्शी वा। संयोजन अणु' स्थूल दहन अग्निरिव गचछति ॥११॥) अनुवाद--( जो / भिचु अप्रमाद में रत है, या अमाठ से भय साने- वाला ( है ), ( वह ), आग को भाँति छोटे मोटे बंधनों को जलाते हुए जाता है । ज्ेतबन ( निगम-वार्सी ) तिस्स ( थेर ) ३२-अ्रप्पणादरतो भिकक्‍खु पसादे भयदस्सि वा । अभव्यों परिहारणाय निव्बारास्सेव सन्तिके ॥१ २॥ ( अप्रमाठरतो भिन्नु प्रमांदे भयदर्शों वा। अभव्य परिहाणाय निर्वाणस्थेव अंतिके ॥१२॥) अनुवाद--( जो ) मिछ अप्रमाद से रत या श्रसादु से भय साने- वाला हैं, उसका पतन होना सम्भव नहीं, ( वह ) निर्वाण- के समीप है । २---अ्रग्रमादवर्य समाप्त




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