प्रतिष्ठा लेख संग्रहः १ | Pratishtha-lekh- Sangrah Part -1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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>> श्री नाहटाजी का कई वर्षों से विचार और प्रयक्ष था कि बीकानेर जैन लेख संग्रह” निकाला जाय। वे बीकानेर नगर और उस राज्य के समस्त स्थित मन्दिरों के लेख ले चुके थे। पर चिन्तामणिजी के भरडार॒स्थ मूर्तियों के ले व जो उन्होंने पूवे लिये थे, वे गुम हो गये थे। अतः उनकी पुनः आवश्यकता थी । इस प्रसय को लेकर लेखों की लिपि-बाचन के उद्देश्य से उन्होंने मुमे भी इस कार्य में लगाया। में उत्साह पूर्वक तेयार था दी, जुट गया । भी अगरचन्दजी एवं श्री भवरलालजी नाहटा के सहयोग से इस समय लगभग २००--२४० लेख मैंने लिये थे । उस समय से मेरा लेखों की लिपि बांचने का भी अभ्यास हो गया । सं० २००२ में बीकानेर रो विचरण करते हुए गुरुश्री एवं में नागोर श्राये । इस कार्य में मेरी रुचि भी थी और अब तो अभ्यास भी हो चला था; साथ ही नाहठाजी की तरफ से समय समय पर प्रोत्साहन मिलता रहता था । अतः मैने नागोर के सब मन्दिरों के पाषाण ओर धातु दोनों के लेख लेना प्रारम्भ किया | तद्नन्तर तो हम जहदों कहीं भीं गये, वहाँ के मन्दियों के दर्शन करना और मूर्तियों के लेख लेना, यह एक ध्येय सा बन गया था । इस प्रकार नागोर से चलने के बांद, कुचेरा, खजवाना, मेड़तारोड, जड़ा, गोविन्दगढ़, अजमेर, किशनगढ़ आदि स्थानों लगभग ८०० लेख एकत्र कर लिये | स० २००२ का चांतुर्मास जयपुर में हुआ। इस ७ तुर्मांस में भी मैने वहाँ के श्वे० जैन मन्दिरों के लेख लेने का क्रम चालू रखा शहर के सब मन्दिर और ग्रहदेरासरों के लेख में ले चुका था। इस चातुर्मास में नाहटाजी गुरुदेव के दशेनार्थ जयपुर झाये। उस समय उन्होंने सुमे प्रोत्साहित किया कि--“जिस प्रकार हमने बीकानेर लेख सग्रह ? तेयार किया है; उसी प्रकार आप भी ' जयपुर लेख सम्रह ' तैयार करलें तो बहुत श्रच्छा रहेगा । शहर के तो सारे लेख आपने ले ही लिए हैं; जयपुर राज्य के अस्य स्थानों में भ्रमण कर अवशिष्ट लेख भी ले लें, फिर इन्हें खतनत्र अन्‍्थ रूप में श्रकाशित कर दिए जाये! रा जस्थान-सान्य प्रसिद्ध श्री गुलावचन्दजी ढड्ढा की भी यही मना थी कि यह की में पूर्ण कर द॑ ।-इसमें जितने भी सहयोग या सह्दायता की ब्ावश्यकता थी, भी उरहोंने देनास्वीकार किया ओर यह भी कहा कि जयपुर जैन समाज तरफ से दी इसको प्रकाशित भी करवा दिया जायगा।




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