सूरसागर शब्दावली | Surasagar Shabdavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
419
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संत्रामूपयों कै नाम |
हिशेस्ता शीर्षक पहों में कई स्था्ों पर राघा-कृष्ण के तौसे तथा पोले बुझूस इस्त्रों का
उक्सेश है--
कनक भूपुर छुमित कल किकियी मलकार।
तई झुंचरि बुपभांयु के संग सोह ग्हंदकुपार ।
सील पीत दु्कूल् स्पामल्त बौर भ्रंय बिकार।
महहूँ शोतन घतन्मटा मै ठड़ित तरस-्प्कार। (६४४६)
प्रघमा-- मौर स्पामस प्रंग सिलि शोठ भए एकॉई भाँति
मीश पौत तुकूस्त दुधि बन दामिनी दुरि-जाति (३४२१)।
दुकूल बस्त पौों की प्राक्न के रेशे से बता भत्पसद मुसायम ब्लौमती रेशमी बस्त होता पा
सूरसापर के उस्सेहों से प्रमुमात होठा है कि यह शब्द भ्रच्छे किस्म के रेशमी घस्त्ज के प्रप में
ही प्रयुक्त हुमा है। ट्रपरी ता हृप्णारापा संबधी बस्त्रों के अत में प्राचीन शाम देशा
स्वाभाविक ही है। सुरसामर में पीले व शोते रंगों के दुकूल का डिक प्राया है जब कि प्राचौस
साहिएए में पफ़ेद बुकूल का उल्लेख प्रथिक है । बर्षमात काप्त में पृक्ल शवइ शोप मूल छे
शपे हैं।
७--दरृप उस्तेश्दतीय शब्द पुर (१८४७४ १४४७ १२४२) [प॑ पटः] है। यह
शब्द प्रनेक परों में प्रयुक्त हुप्रा है। ह्लोपरी घस्त-हरण प्रध॑म में बस्च के प्रस्य पर्यामबात्री शब्दों
के प्रतिरिक्त 'पट' भौ प्राया है--
'सुभिरत वाम ह्ुपद-तनया कौ पट भनेक ।जिस्ठारपौ (१७)
पा--घुमिरत पट कौ कोट बढ़पो तम दुल सागर उबरी। (१६)।
इृप्द दबा राषा के इस्तों में नीले या पीत-्पट का पहले भी जिक्र किया जा चुका
है--बा पट पौत की फहरानि (२७१)।
पा--- सद फ्षोपत-तह-शनस्त्याम । शब्र पीषपह प्रभिशम! (१९४१)
तबा--- मील पीठ पट घन दामिती की मोर (१४४७) ।
पट के प्रठिरिषठ पट॑चर (६५६ ६४९) [सं पट + पंबर्र] पाटंवर-पंबर (१६६
६५४) ठपा पाट-पटम्बर (४१) शप्द प्रथम स्करप में दिलव हपा दशम स्कर्प कै हृष्प-
अष्मोर्सद संबंधी पदों में बिरोप कप से मिलते हैं-“पाटम्पर अम्वर तजि मृहरि पड़िराद
(१६६) तजा (ुम्हरें मजन सर्वाई सिंगार किंफ्निनि सूपुर पाद पटंबर मानो स्षिये फिर
घण्बार' (४९) ।
१-धा० भा थे ,प् १४७ प्राचरांप को टीका मैं 'नौशदिपय विशिष्ट शार्पातिकाँ
दिया घया है किएतु तिशौद ७, (प्र०४५७) में दूसरी ध्यास््पा है दुपुश्सो रस््तों शप्स
बापो पेतु रपुकूले हुट्टरम्भति पारििणएश! ता छाब सूशो सूझो ताहे रुच्यति इगुस्तो', प्र्धात्
पृफूल गृश्न की छाल के रेशे पामौ में कुट कर ध्सप कर लेते हैं भ्ौर इनसे सूत कात कर
बनाते हैं । पहौ ध्यास्या ठोक शफ्ती है। ऐसा रूपता है सि ल्ोप टौक प्र्थ भूल कर प्रत्येक
सहोग घुखे जश्न को दृषृल रहने लगे ।
रेजनपा जा दे , प्र श४ड
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