श्री मदनुयोगद्वार सूत्रम | Shri Madnuyagadawar Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
333
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र - # अलुयोगद्वार सूत्र #
किन्तु जैन छजञ्न, सूस माकृत वा हत्ति सं॑रक्षत में ही जायः प्रतिपादित हैं
जिन में प्रवेश छरना प्रत्येक व्यक्ति को सुगम नहीं हे तथा जो गुजराती भाषा
“टब्बादि किख हुए हँ -यछपि थे परम उपयोगी हूँ किन्तु पे एक प्रान्त के
लिये ही उपयुक्त है सवे प्रान्तों के [लिये नहीं ।
इसलिये सर्व हितेषी आज दिन हिन्दी भाषा को ही प्राय. सब विद्वानों
ने स्वीकार किया है इसलिये गेरा विचार भी यही हुआ कि जैन शाज्लों का
हिन्दी अनुवाद करना चाहिये जिस से प्रस्पेक्त व्याक्ति आत्मिक लाभ ले सके,
किन्तु इस काम से अपनी असमयथेता को देख कर इस शुभ कार्य में ऋाज तक
विश्व होदा रहा अपित १६७ १वें वषका चातुममास श्रीक्री श्री गणा-
न . र्थां १ अंक 1 /
वच्छेदक वा स्थविरपद विभूषित श्री स्वामी गणपतिरायजी/
महाराज ने कसूर नगर में किया दयामैं भी आपके चरणों में ही निवास
करता था तव मुझे वाबू परमानन्दजी ने व. १० शनि ज्ञानचन्इजी ने
प्रेरित किया कि आप श्री अुयोगद्वारजी सूत्र का हिन्दी अनुवाद करो जिससे
बहुत से प्राणियों को जेन शासन के अमूल्य ज्ञान की प्राप्ति हो क्योंकि
सत्र से पायः सबे विषयों का समावेश है ओर प्रत्येक विषय को बड़ी योग्गता के
साथ दरशन किया गया है ओर जेन सिद्धान्त की बहुत ही सुंदर शल्ती से
€” ७,
- व्याख्या की गई है प्रत्येक विषय की व्याख्या उपकृम १ लिक्षप २ अंलु-
गेम ३ नय ४ द्वारा की गईं है । इसी वास्ते इस का नाथ अलुयो-
गद्धर ह।
-- यथा--स्वाभिधायक उर्रेण सहायेरप अनुगीयते अजुकुलोवा योगोस्यदस
अखियेय प्ित्येव॑ संयोज्यशिष्यभ्यः प्रातिपादनमनुयोगः सुत्राथक्यनमित्यर्थ
अथवा एकस्पापि सूत्रस्यानन्तोणे इत्यर्थों महान् सत्र लणु ततश्ांणु ना सजेण
सहायस्ययोगो अलुयोगः तथा अलुयोगस्य विधिवक्कब्यों थथा प्रथम छत्राथे एवं
शिष्पस्य कथनीयं द्वितीयवारे सोपिनियुक्तयद कथन पिश्रस्तृतीयवारायां तु प्रस-
जानु प्ंसगाउुगतः स्वोप्यर्थोवाच्पस्तदुकं सुत्तत्योखलुप्मोवीओनिन्जुतिमीसतों
भणियों तइयो निरविसेसों एसविही अशुओगो ||
इत्यादि प्रकार से अहुयोग की विधि वणन की गई हैं तथा अन्य प्रकार स
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