षट् प्राभृतम् | Shat Prabhritam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
485
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अपना पूज्य श्रन्य बतलाते हैं ” 1* इससे आश्चर्य नहीं कि कुरलके रचयिता
अगत्ुन्दउन्द ही हों। कहते हैँ एटावार्यने इसे रचकर अपने एक शिष्यक्रो
इस लिए दे दिया या कि वह मदुराक्ते कविसेंधर्मे जाकर पेश करे 1
नन्दिसधकी गुर्वावलीमें लिखा है कि भगवत्कुन्ददुन्दको वि० संवत् ४९ में
आचार्यपद् मिला और १०१ में उनका स्वगेदास हुआ । तामिलदेशके विद्वा-
नॉने कुरलकावब्यक्ता रचता-दार भी ईसाकी पहली शताडिद निश्चित किया है।
यदि सचमुच ही वह इन्हीं एलाचार्यका बनाया हुआ है, तो पश्चवलोके समयक्े
» साथ उसका रचनाकाल मिल जाता है ।
हमने अपने पूर्वोद्ठेखित लेखमें भगवत्कुन्दकुन्दा समय विक्रमड्ी तीसरी
शताब्दि निश्चित किया था ।
उसके बाद जैनसिद्धान्त-प्रकाशिनी संस्याद्वारा प्रकाशित “समयप्राइत ! की
भूमिकामें दक्षिणके सुप्रसिद्ध इतिदासह्ञ प्रो के० बी० पाठक यद्द मत प्रका>
शित हुआ हू कि कुन्दडुन्दाचाये वि* संवत् ५८५ के लगभग हुए हैं। अपने
म्तकी पुष्टिमे उन्होंने लिखा हू कि जिस समय राष्टकूट-वंशीय राजा तृतीय
गोविन्द राज्य करता था उस समय, शक संवत् ७२४ का लिखा हुआ एक
लाम्रपत्र मिला है। उसमें निम्नलिखित पथ दिये हुए हैं --
कोण्डकोन्दान्वयोदारों गणो5भूद्भुवनस्तुत ।
तदैतदूविषयविस्यातं शावमलीभाममावसन् ॥
भआासीद(1)तोरणाचार्यस्तपःफ़लपरिग्रह: 1
तजोपशमसंभूतमावनापास्तऊल्मप ४
पण्डितः पुष्पनन्दीति बसूव भुवि विश्रुतः ।
अंतेवासी भुनेस्तस्य सकलश्चन्द्रमा इघ ॥
प्रतिदिवसमबढद्धिर्निरस्तदोषो ध्यपेतह्दयमलः ।
परिभूतचन्द्रबिस्वस्तच्छिष्यो5भूच्य भाचन्द्रः 1
उक्त तृतीय गोविन्द भद्दाराजके ही समयक्रा शक सवत् ७५१९ का एक
और ताप्रपत्र मिला है, जिसमें नीचे लिखे पय हें ---
' 2शेदेडों जैनदिवैपी साय १५ अकू १-२1
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