योगासन | Aatmanand
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.01 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यायामका प्रभाव श्प् स्थितिमें इससे क्या परिवतंन होता है । पेशियां भी एक तरहसे अस्थि- पंजरकी पोशाक ही हें पर इनमें वि्वेषता यह हैकिये आवश्यकतानुसार फैलती श्र सिकुड़ती भी हें । शरीरपर व्यायामका स्पष्ट प्रभाव बढ़ी हुई इवसन-क्रियाके रूपमें देख पड़ता है । व्यायामके कारण अधिक मात्रामें बने हुए भ्रंगाराम्लसे रक््तकों मुक्त करनेका प्रकृतिका यह विशेष उपाय है । पेशियोंके सक्रिय होनेपर उनकी झोर रक्तका बहाव तीब्र हो जानेसे सारे शरीरका रक््तप्रवाह प्रभावित होता है जिससे रक्तवाहिनी नलिकाएं फैल जाती हैं हृदय तेजीसे रक्त फेंकने लगता है और फुफ्फुतल त्वचा यकृत श्रादि भी उद्दीप्त होकर अधिक कार्य करने लगते हैं । ओषजन श्रधिक मिलनेसे आ्रांतोंकी क्रिया भी तीब्न हो जाती है जिसका परिणाम यह होता है कि भूख तेज हो जाती श्र ग्रंथियोंसे पाचक रसोंका स्राव अधिक होने लगता है जिससे भ्रच्छे ्राह्हरकी उपयोगिता तो बढ़ ही जाती है बुरे झ्राह्मरका प्रभाव भी नष्ट हो जाता है । लसीकाका कार्य व्यायामके संबंधमें महत्त्वकी एक वात श्र हैं जिसकी श्रोर बहुत कम लोगोंका ध्यान जा पाता होगा। वह है लसीकाका कार्य । यह शरीरके सभी तंतुभ्रोंमें व्याप्त रहती है श्रौर कोषाणुझ्ोंको ठीक उसी तरह श्रावृत किये रहती है जिस तरह हम लोगोंको झाकादत्तत्च । रक््तका बहाव जहां समाप्त होता है उसी जगहसे इसका बहाव श्रारंभ होता हैं । रक््तसे वहुत पतला होनेके कारण यह रक्तकी सूक्ष्म केशिकाओं में घुस जाती है श्र अपने जरिये कोपाणुश्रोंके साथ रक््तका सम्पर्क स्थापित कर देती है। यहीँ कोपाणुश्रोंमें पोपण पहुंचाती श्रौर उनका मल ग्रहणकर शिरात्ंके जरिये ले जाती श्रौर उसे बाहर निकालनेके लिए हृदयके पास रक्तकी वड़ी नालियों में पहुंचा देती है । इस प्रकार कोपाणुश्रोंके पोषण नये कोपाणुझ्ोंके निर्माण आदिकी दृष्टिसि इसका तीव्रगतिसे प्रवाहित होते
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