जिन्होने राह दिखाई | Jinhone Rah Dikhai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jinhone Rah Dikhai by संग्रामसिंह चौधरी - Sangramasingh Chaudhary

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about संग्रामसिंह चौधरी - Sangramasingh Chaudhary

Add Infomation AboutSangramasingh Chaudhary

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
डेस्क आइग्स्टाइन खा हो, 'अन्धी जडता' के अतिरक्त कुछ नही हैं। इनको सम्भवेह. वनाया ही इसलिए गया था कि मनुष्य स्वाघीनताएवंक चिन्तन प्रमनन करना छोड दे । जिम्तेजियम से स्नातक होकर आइन्स्टाइन ने अपने धर्म-सम्प्रदाय की सदस्यता से त्यागपद्ध दे दिया । वर्षों चाद हो वह अपनी यहूदियो की बिरादरी मे भिले--उन दिनी जब कि हिटलर के अधीन नाजी अनुशासन मे जमनो ने यहूदियों के बीज-नाश को जैसे सोगनन्‍्ध ही खा ली थी । आइन्स्टाइन के इन्जीनियर चाचा के कारण बालेंक आइन्स्टाइन की गणित से रुचि उत्पन्न हो गई। उन्हीं ने बालक को सर्वप्रथम यह समझाया कि किस प्रकार एक प्रश्न के समाधान में बीजगणित के द्वारा समय बच सकता है और प्रश्न भी सरलता से हल हो जाता है ॥ उन्होंने सब कुछ परिहास ओर विनोद भे, घालेक की परिहास-ब्रुद्धि की जगाते हुए कहा, “देखो, विज्ञान कितना रोचक है ! यह एक जानवर है, जिसका हम शिकार: कर रहे हैं, पर वह बस मे नहीं आ रहा, हम उसका थोडोी देर के लिए, नाम रख देते हैं--'क्ष| और अपनी बन्दुक का नाम है 'य!। अब अपना शिकार प्रारम्भ करते हैं जब तक कि उसका क्षय' नहीं हो जाता--वह्‌ पकड मे नही जा जाता ।” आइन्स्टाइन पर 'ज्यामिति' का सबसे अधिक प्रभाव पडा । ज्यामिति के पढने से वह बहुत प्रसभ होते । कम शब्दों में तर्क- पूर्ण ढंग से सब कुछ कह देना, अत्येक वाक्य के लिए प्रमाण और समर्थत की आवश्यकता तथा हर सिद्धि मे युक्ति-क्रम की अदूट शखला और प्रत्येक प्रश्न को हल करने के लिए मिजी विन्‍्तन॑ फा अवसर। जआाइन्स्टाइन ने स्वयं इस बात को मनी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now