श्रावक - धर्म - संग्रह | Shravak - Dharm - Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आवफ घमम-समढ 3६
झुशवर आटि किसीको ससारका उत्पादक, पोषक और नाशक
मानना युक्त विरुद्ध है; तथा ऐसा माननेसे कई दोप भी
मत्पान होते हैं। यद्दा पर उसीका सक्तिप्त रूपसे घर्णन किया
काशाहैनन न अरिरिकास
सष्टिशा अनादिनिघनत्व |
यदि ऐसा माना जाय कि बिना कर्चांक्रे कोई फाये द्ोता
नहीं दिखता, इसी हेतुमे रूष्टिको ईश्वर या खुदा भादि किसी
जे बनाया है। तो यहाँ यह शक्का पत्पन द्ोती है कि सृष्टि बनमे
के पूव कुछ था या नहीं १ इसडझा उत्तर यही होगा कि ईश्वरफे
सियराय और छुछ सी नहीं या, क्योंकि जो ईश्य॒स्फे सिवाय
चृष्वा जल आदि होगा माना जाय तो फ्रि ईश्वरने बनाया ही
क्या | शतण्व अकेला ईश्वर ही था। यद्दाँ भ्श्न उत्न्न होता
है कि ज्ञप बिना कर्ता के कोइ भी काय न होमेझा नियम है
सो ईश्वर भी तो एक याये ( वस्तु ) है, इसका कत्तो होना भी
जरूरी , । यहोँ फोई कद्दे कि देश्वर अनादि है इसलिए उसका
वर्त्ता कोई भर्दी। मला जब अनादि ईश्यर्के लिये क्र्त्ताकी
आवश्यस्ता नहीं तो उपयु क्त पद् दृब्य युक्त अनादि सृष्टि का
करत्तो मानने की भी क्या जरूरत है? और यदि ऐसा माना भी
लाबे कि पहले इश्वर अश्ेला था और पीछे उसने सृष्टि रची
सी सृष्टि रचतेके लिए उपादान सामप्री क्या थी और वह कद्दा
से आइ १ अथदा जो ऐसा ही मान लिया ज्ञाय कि इश्पर ठथा
सृष्टि बनने की उपाश्यन सामप्री दोना अनादिसे थीं, दो प्रश्न
होता है कि निरीह (इन्दारहिव, रृवकत्य ) ईश्परकों सृष्टि
रचने फी आवश्यकता क्यों हुई ९ क्योंति बिना प्रयोजन के कोइ
ओऔ जीव कोई भी काये पहों बरता। यहा कोई कह्दे कि ईश्वर ने
अपनी असन्नता के ज्िए सृष्टि रचने का कौसूहल किया, तो ज्ञात
दोता है कि सूष्टिफे बिना अश्लेले ईश्वरको थुरा (दुख)
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