रासपंचाध्यायी और भँवरगीत | Ras Panchadhyayi Aur Bhanwar Geet

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Book Image : रासपंचाध्यायी और भँवरगीत  - Ras Panchadhyayi Aur Bhanwar Geet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( छ ) यासुदेव पर चान वासुदेव पर तप ! चासुदेव परो धर्मा बासुटेव परा गति ॥ वास्तव मे इस युग में भागयतसार की उपर्यक्त पुझ्ार या अक्षरश पालन हुआ | हम हसे “भक्तियुग! कह सकते हैं | इस युग म वृन्दावन चैएणुय धम का फेन्द्र घना जिसर फ्लस्परूप क्ज़मापा सम ग्रोक मत कि उत्पन हए | सूरदास तथा नन्‍्ददास इन फविया मे अ्रप्मगण्य थे। आगे चलकर 'रीति-काल' म इृष्ण के इस रूप म भी परिवर्तन हम्रा। इस पाल में वे भक्ता के ग्रागष्य टेव ने होफर नायक परत गये शीर राधा नायिका प्न गई । रीतिमाल के समस्त सरिया--जेते प्िद्दारी तथा देव आदि ने मगवान्‌ कृष्ण को इसी रूप में प्रति क्या और कन्हैया! शद एफ प्रगार से नायक! का पर्याययाची द्वो गया। श्रेणी पिमानन की दृष्टि से हम इसे कृष्ण का तीखरा रूप कद्द सकते हैं । हे कपियर नाददास ने भगयान्‌ उष्ण फे दूसर रूप को ही ग्रहण क्या है। वे वास्तय मे एक भक्त जत्रि हैं। « गार रस का प्रालुय्य होत पे कारण कतिपय ग्रालोचक उनके काव्य म लौकिफ पत्त की प्रधानाा मानते हैं, रिन्‍्तु यदि विचार करके देसा जाय तो नाददास एफ धार्मिक कपि थ | अं से पर तो अल अश प्रात हुआ था, उसी ने उन्हें काव्य-रचेना की और प्रेरित किया। इसलिए पारलोक्कि पक्ष या सर्यथा त्याग कर केवल लीकिक इठि से ही नन्‍्ददास पर यिचार बरना उनके साथ अन्याय करा द्वोगा। नीये इद्धा दोनों दृश्यों से नन्‍्द॒दास झृत 'रासयचायायी' पर विचार जिया जायगा | लौतिफ दृष्टि से पचाध्यायी सयोग शद्भार की एक स्ीय रचना है निसम कृष्ण तथा गोपियों को रासप्रीड्ा फझा वर्णन ह। सुधा पद्माध्यायी में वर्षिणी मुरली प्यनि सुत्र ज्योल्या प्रिमद्धित शावि लौकिक पत्त॒ में गोपिया उत्मुत होपर इष्ण-दर्शन के लिए घर ये निकल परती ह। प्रेम में तल्‍लीन शोने के कारण उर्दें लोर-मबाटा या




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