पासणाहचरिउ | Pasanahachariu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
564
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्पादन पद्धति श्र
, 'छ/ को 'तु! भी लिखा है अतः इसमें और तु में भ्रान्ति होती है।.'
. 'बः तथा छः में भेद नहीं क्रिया गया है ।
. 'बख' को सर्वत्र एक रूप से लिखा है ।
७५. यदा कदा “या के छिये 'इ! तथा व! के लिये 'उः उपयोग में लिया गया हैं। '€” का उपयोग ४! के ह्यि
भी किया गया है ।
(आ ) क प्रति में :---
१. छ' 'ज्ञ' तथा ध्थ' के लिए वहुघा प्छ, झा और 'त' का उपयोग हुआ है ।
२. साधारण व्यज्धन को जब तव अनावश्यक रूप से हो संयुक्त व्यज्जन बना दिया गया है।
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३. पाद के अन्त को व्यक्त करनेवाले दण्ड को. अन्नर के इतने समीप और वरात्री से रखा है कि वह अक्षर का
भाग ही प्रतीत होता है ।
९. अनुनासिक पदान्त व्यक्त करने के छिए किसी चिह् का उपयोग नहीं क्रिया ।
(३) ख प्रति में :--
१. ओो को 'उ रूप से छिखा है तथा कई स्थानों पर वह केवल 'उ' ही रह गया है।
. ढ! के स्थान में कई स्थानों पर 'ठ' का उपग्रोग किया गया है ।
. 'उ' के छिए '% काम में लिया गया है |
« 'इ' को बहुधा हर के रूप में लिखा है ।
. 'हं! के रथान में 'इं! बहुधा लिखा गया है ।
“६- अनुनासिक पदान््त व्यक्त करने के लिये अनुस्थार का उपयोग किया है। अनपेक्षित स्थानों पर भी अनुस्वार का
उपयोग हुआ है | '
सम्पादन पद्धति
सम्पादन कार्य निम्न नियम निर्धारित कर किया गया हैः--
१. शब्दों के वर्तेनी में परिवर्तन कर किसी एक शब्द की सत्र समान वर्तनी बनाने का प्रयत्न नहीं किया गया |
यदि दोनों प्रतियों में एक स्थान पर एक शब्द को समान वर्तनी प्राप्त हुई तो उसे ग्रहण किया है किन्तु यदि अन्य स्थान
पर उसी शब्द की वतेनी दोनो में मिन्न हुई तो क ग्रति का पाठ ग्रहण किया है तथा ख प्रति के पाठ को पाठान्तर के
रूप में किया है |
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२. य तथा व श्रुति में कोई भेद नहीं किया है तथा इन्हें बिना किसी पक्षपात के ग्रहण किया है | ताल न
कि यदि क प्रति में व श्रुति आई है और ख प्रति में व तो क प्रति के पाठ को अहण करने के नियम के अनुसार
श्रुतिवाल्ा पाठ छिया है । नुसार व
३. यदि दोनों प्रतियों में किसी छप्त व्यज्ञन के स्थान पर केवछ “अ! ढिखा है तो, वहाँ अपनी ओर से 'क
'व! श्रुति को नहीं जोड़ा है | किन्तु यदि किसी श्रुति में उस अ के साथ कोई श्रति आई हो के डे रे ह् या
४- जिन स्थानों पर छ्त व्यशन का अवशिष्ट 'अ' छंद के अच्य यमक में आया है तथा सं लेरजॉर कं क
किसी प्रति में यह 'अ! किसी श्रुति के साथ आया है तो उसे दोनों स्थानों पर 'अ! कह दिया के का के स्थानी यमक में
अंकित नहीं किया है । े या है तथा उसका पाउ-मेद
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