जैनपदसागर प्रथमभाग | Jainpad Sagar Bhag- I

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Jainpad Sagar Bhag- I by पन्नलाल बाकलीवाल - Pannalal Bakaliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विज्ञापना । विदित हो फि--जैन सादित्यके संगोत शिसागरमे एक भाग जन पदाका ( भजनां ) का बड़ा आंग ह, जिसमे सेक्दों आायोन अवायोन फव्ियोंफि इजारों दर भजन होगे उनमप्रें ट धर घुकले- छझरोंने फम्रियर यनार ली, धाननराय भूषादास, भागचंद, दोलस राम मुघजनफे पर्दोका संग्रद मिन्न २ छपायो है परंतु उनमें प्रमानी एजरी, (दज्रीे पद्म भी जिनयाणास्तुनि, शुरुष्तुति, बधाई ) दोरो जादि उपदेशी अब्यात्मोवररंशीं पद्पात्मोक पिथयके सेऊडों पद भजन हैं, परंतु मिन्न भिन्न शिप्रषोकि भजन एकद्ी जगद् अनेफ फ- पवियोके पदोका संग्रह झिसीने भी नि छपाये। गायक अनेफऊ सनी भाई मिप्त २ सविवाले होते हैं कोई भाई हज्ूरी परदोंका गाना पसंट करते हैँ कोई भाई उपदेशों, घा घैराग्यमय अध्यात्मोकऊ पदों फा गाना पसद मरते हैं, इस कारण हमने बड़े परिथ्रमले समस्त कपियोंके पर्चेंकों गायकर अर्थक्तों समक ऋण भिन्न रे विषयोके छांटफर भिन्न २ सम्रह तेयार करके लिखने और छपाने दा प्रबंध फिया है । दो घर पद्चिछे हमने उक्त ६ कंब्रियोके उपयुक्त ना विपयोके पदोफा समप्रह किया था परंतु उनके छपानेका बहु हुब्घ साध्य ब्लार्य नर्दि कर पाये । अब इन समछ्त पदोंके छपानेका भार फलकत की भारतीय जेनलिद्वांतप्रकाशिनी संस्याने स्वीकार पर लिया है इसकारण अब इन सब पदोंको बहुत शुद्ध फठिन शब्दों पर टिप्पणी सद्दित कपडेके बेलनसे पचित्रताके साथ छापना प्रारंभ किया है उनमेंसे जैनपद्सागरके अथम्भागका प्रथम:




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