दश रूपकम् | Dashrupkam

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Dashrupkam by डॉ भोला शंकर व्यास - Dr Bhola Shankar Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची भूमिका १-५९ संस्कृत नाटक की टत्पत्ति व विकास-नाटंओ का मूल अनुकरयवृत्ति-मारतीय मद-- वैदिक संदादों में नाइकौय तत्त-पाश्चात्य विद्वानों के मत-पाणिनि, एतक्ञल्षि तथा काम- सूद सै माक्कों कौ रियति का संकेद-साव्यशाक् का संक्तित इतिहास-भरत-मरद के ब्याहपाकार-धचक्षम ठथा भुनिक का पेंतिहासिक परिचम-नाय्यशाप्ष के पएवर्ती अप | अज्य का संक्षैए-झप उनके भेद व मैदझ तत्त-कथावस्तु या इतिबृत्त-अर्थप्रशुति, अपरपा, एन्पि तथा सन्ध्यत्ञ-संस्कत नाएओं मैं दुष्छान्त नाटकों के असाव का कारए- छिष्पम्मक तथा प्रवेशक-पताका तया पताकाश्यानक-संवाद के प्रकाश, स्वगवादि शेद- नेता के धीरललिदादि दया दक्षिणादि भेद-नाथक का परिच्छद-वामिकरानरीद का आधार-रस की पुष्टि-एस के सम्बन्ध में मत-लोझट, शंकुक, भशनायक तथा भमिनद के भत-धुनक्षप का मत-नज्तविरोथ तथा उसका परिहार ६ घनक्षय द्‌ घनिक की भाज्यताएँ-ध्यक्षणा का खण्डन-रस बादयाय है-रस तथा विज्ञाकादि में भाव्यमावक सम्बन्ध है-धचझय के मत में छोहट, शुंकुक तया भइमायक के मतों का मिश्रण-शान्त एस के सम्बन्ध में धनझय के विचार ३ प्राचीय भारतीय रप्मंथ ६ प्रथम प्रकाश १-ज२ मंगलाचरण तथा ग्रन्थ के उद्देशादि का विवेचन-रूपक परिमाषा व मैद-नृत्य तथा घृत्त के मेद-ूतिवृत्त के दो भेद-पताक्ा तथा पहांकाए्यानक-५ अमप्रकृतियों-५, अब स्पाएँ-५ सन्वियों-मुखसन्वि छत्ण तथा १३ अप्त-प्रतिमखसन्धि लक्धणु ठया १३ शह्व- गर्मशन्पि छत्तण या १२ अफु-अवमशैसस्ि लक्षण तथा १३ अज्-निर्वेदण सन्थि छक्तण तथा ९४ शज्न-वस्तु का दृश्य तथा सूध्य सेद-सूद्रम धस्तु के सूचक ५ अयोपक्ते- चक-विष्कम्मक फे दो मेद-अ्रवेशक, चूलिका, णक्भास्य तथा अक्ावतार-दस्तु के सर्वश्षाव्य, अद्नाव्य ठया विपतक्राध्य ये तौव सेद-आकाएमापित-उप्दार १ द्वितीय मकाश छड्े-१४२ आायक का लक्षए-उसके ४ मेद-घीरललित, धीरशान्व, घौरोदात्त, धीरोद्धत-शज्नारी चायक के ४ भेद-दद्धिण, शठ, घृष्ट तथा अतुकूल-उसके सहायक, विट, विदूषक, श्रति-




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