हौसला | Hausala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
468
श्रेणी :
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No Information available about अश्वत्य के॰ नारायण राव - Asnvaty K. Narayan Rav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २१ )
के बाद चरवड्नी हुई है। दोनों जून अन्न सादे हैं, जी मर सो छेते हैं । मैं अपवे
छोटके की मदद हो कया कर पाता ? छाचार था, हाथ खीच लिया था। इधर
मन््त्री, अफसर, पुम्हारे सरीक्षे पढ़े-लिखे भादमी, बड़े-बड़े फहलछाने वाले कई
सदल-बक गाँव आए 1 सुता कि सभी कुदाली, गडारी साथ ठाए थे। कमर कस
कर मिट्टी की खोदाई और फिराई में जुट गए । ताज्जुश की बात यह कि काम
भी हो गया | तालाब पुराना या ही, धड़ा भी रहा। दी महीने में दुरुस्त हो
गया | पानी भी भर गया। पारसाछ छोटे ने धान की खेठो भी की । थोड़ी-पो
रकम भी हाय आई। 'पा्ष सोना रहे तो कन्या की कमी वीक्षी ? व्याह भी
हुआ | प्रभु की दया रहे, तो बाल-बच्चे मी हो हो जाएँगे । वाहरी लोगों को भी
एक बृक्त थिला सकता है। वहू भी एक इंसान बन जाएगा । शुगर बदल रहा हैं,
भैयाजी ! यहां अपने छोटके की चारु चरित्तावली है ॥/
बूढ़ा कहे जा रहा था। गंगाधर सावधानी से वृतास्च सुनवा जा रहा था।
स्इेशन से धाहर भावे ही उसने सामान उतरवा लिया 1 इससे पहुछे यदि ऐशी
रामकहानी सुब्तता, ती न जाने उसकी ध्रतिक्रिपा क्या होती ? छेकरित इस समय,
इत्त गेंबार की कछाहीन कहानी, उसे पढ़ी हुई कहानियों एवं उपन्यासों से ज्यादा
दिलचस्प छग रददी थी। कहानी कहते समय बूढ़े की आँखों में जंगी जोश और
ध्वनि में व्यक्त उत्साह कहानी को रसात्मझुता का पुठ देने वाले घिद्ध हुए ।
दीक्षित को इसमें उत दिनों के भारतीय जन-जीवन की व्यापक कपा-इतिहास-
सार भादि की झलक दिखाई पड़ी । उसे भासित हुआ, मावों माँसों में छूमे इस
श्षेजन से मछिनता हटती गई ओर दृष्टि अधिक साफ होती भी गईं। यही कहानी
बारबार भाद किए जा रहा था।
“धर कैसे पहुंचेंगे, भया जो !” बूढ़े का यह प्रशव उसे धरती १९ छे आया,
वबिछगूर से कोई सवारी नहीं है । डाकगाड़ी के वक्त तक भा जाय तो भा जाय
(इस प्रश्न के उत्तर-रूप में ही मानो किसी सवारो के आने की सूचना गाड़ो
में जोते गए वैछों के गछे में बेंधी घंटिकाओं की ध्वनि से मिली ।
“हो, अणदप्पा महाराज की गाड़ी आ गई ।” मुद्ृष्णा ते घ्वत्ति को पहचान
के बस पर कहा $ कर
“बणदय्पा महाराज उस ओर भायणस में विश्यात बेलगूर के हिरियण्णनी
थे। गंगापर के लिए तो ये पितृ सदृध् थे । बह उनके परिवार में घुछ-मिच्र गया
था । उतसे पर्याप्ठ सहायता भी प्राप्त की थी ।
गंगाघर के लिए घंटिकाओं की बहू घ्वति अपरिचित न थी। दूसरे ही क्षण
मोड़ पार कर बड़ी कमानों वाछी याड़ी दिख्लाई दो। वहीं थी, कोई भ्रम ने
हो सकता। बैल भो वह पहचान यया--राम तथा छृदमण। दोनों उसके छिए
झंग्रोदिया यार के समान थे। बचपन में कई यार बदन रगड़ वार महछाये
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