निरूपमा | Nirupama

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Nirupama by महेशचन्द्र सक्सेना - Maheshachandra Saksena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूर्य-किरण / 25 चुस्वी सेता हुआ कह रहा था--बेटा हो तो कपिल देव जैसा। यदि उसे अपनी मा का सहारा न मिलता तो वह इतना बडा सिलाडी ने बन पाता | किन्तु आजकल माता पिता बालकों की रुचि जाने बिना ही उह्े डॉक्टर या इजजी नियर बनाने मे ही अपना गौरव मानते हैं । लड़के लडकी मे भेद- भाव करते हैं वह अलबत्ता । शावास राकेश शाबास | तुमन मेरे मन वी बात कह दी । इन वहनो कय समसाना कठिन है। मेरा भी कहना यही है। एक सूय लाखो सितारों से उत्तम है। चाहे लडकी हो या लडका ! गुण चमकता है यही लोग समाज ओर देश वा इतिहास गढ़ते हैं । श्रीमती खना रावेश का तब सुनकर कुछ सोचने पर विवश हो गईं । और अब उन्ह मेरी बात मे भी सार नज्वर आने लगा। उनका तिलमिलाया चेहरा किसी आन्तरिवः बदलते भाव से चमक उठा। मुझे लग रहांथा जैसे उनके व्यक्तित्व का कायाकल्प हो रहा हो । उनमे नये विचारों को ससझने को शक्ति आ गई हो । मैंदे तुर्त उनसे पूछ लिया--आप ही बताए कि मेरा कथन वहा तक है? श्रीमती खना लज्जा का अनुभव करते हुए कुछ बोल न सकी, उन्होंने केवल सकारात्मक सिर हिंला दिया और कमरे स वाहर चली गईं ।




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