णमोकार मन्त्र कल्प | Navkar Mahamantra Kalp

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Navkar Mahamantra Kalp by देशभूषण जी महाराज - Deshbhushan ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। | अलुष्टुलतबद्धमदू्युताशयसंवलितं श्रीपंचनमस्क्ृतिस्तवन प्रतिष्ठित तमःपारे पारे वाग्वतिवैसवस्‌ । प्रपचवेधल पंचनसस्कारममभिष्ठुम* ॥१॥ जो अज्ञानान्धकार के उस पार प्रतिष्ठित है श्रर्थात्‌ अज्ञानाग्वकार के वाशक है, जिन्हें श्रज्ञानान्धकार स्पर्श भी नहीं कर सकता तथा जो वाणी की सामथ्य से परे है, इस ससार के मायाजाल को छिन्न- भिन्‍न करने वाले है ऐसे पचनमस्कार रूप मन्र का मैं स्मरण करता हे अहो पचनमस्फार कोउप्युदारी जगत्सु य* । डा सम्पदो5ष्टो स्वय धत्ते दर्तेडनन्ताः स्तुत सता ॥शा तीनों लोको में अतिशय उदार पचनमस्कारमन्त्र आरचर्यजनक है। जो स्वय तो अप्टसिद्धियों को ही वारण करता है किन्तु स्मरण किये जाने पर वह श्रनन्तसिद्धियो को देता है । दत्तेजज़ुकूल णवान्यों भुक्तिमान्रमपि अभु । एप पचनमस्कार प्रातिलोम्येडपि मुक्तिदः ॥श॥। ससार मे सामथ्येशील भ्रन्य व्यक्ति (राजा, महाराजा) अनुकूल होने पर ही भक्ति (भोग) मान देते है कितु यह पच नमस्कार मत्र ही ऐसा है जिसे उल्टा पढने पर भी मुक्ति प्राप्त होंती है। श्शू




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