रत्नाकर - शतक भाग - 2 | Ratnakar Shatak Bhag - 2

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Ratnakar Shatak Bhag - 2  by देशभूषण जी महाराज - Deshbhushan ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करना चाहियें ! आाचायें महाराज हिन्दी-सेवा के साथ-साथ जैनवाइ मय की जो सेवा कर रहे हैं, वह तो विज्ञेष उल्लेखनीय है ही । मुझे यह देखकर सन्तोष है कि महान जैनाचार्यो ने अपनी प्रतिभा और विद्वत्ता का उपयोग जैनवाह, मय को समृद्ध करने में किया झऔर आचार्यो की उस परम्परा का निर्वाह झांचायें देशभूषणजी मे भो करके जिनवाणी माता को म्रर्घ्य- दान किया है । इससे भी अधिक सन्तोप इस बात का है कि लेखक के गौरव का श्राकलन उसके जीवन-काल में ही हो, यह सौभाग्य कम ही लोगो को सिल पाता है । किन्तु आचार्य महाराज इस मामले में भी पुण्यशाली है । उनकी रचनाश्ं का विद्वानों मे जो समादर श्राज भी है, वह उनकी सफलता का मापविन्दु है । आाचायें महाराज की प्रस्तुत रचना-रत्ताकर शतक का प्रथम भाग (द्वितीय संस्करण) कुछ समय पूर्व प्रकाशित हो चुका है, दूसरा भाग यह प्रस्तुत है । मुझे आशा है, सर्वेसाघारण श्ौर विद्वानों के लिये अ्स्य रचनाग्रो की त्तरह यह रचना भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी । द्वितीय भाग के दाता स्वनासधन्य साहू शान्तिप्रसादजी रत्ताकरशतक जनता को इतना अधिक पसन्द आया कि इसका प्रथम सस्करण हाथोह्ाथ चला गया आर कीघ्र समाप्त भी हो गया । किन्तु फिर भी जनता की मांग जरा भी कम नहीं हुई । तब इसका दितीय सस्करण निकालने की योजना की गई । पूज्य आचायें महाराज ६ वर्ष पश्चात्‌ दिल्‍ली नगरी मे पुन पघारे और उनका चातुर्मास हुमा ! जनता की सांग को देखते हुए इसके प्रथम भाग को प्रकाशित करने के लिये ला० उदमीराम कुत्दनलाल जी की अन्त प्रेरणा हुई और उसका मुद्रण तथा चाइण्डिंग का सारा व्यय उन्होने दिया । उसके कागज का व्यय स्वचामघन्य श्रावक-शिरोमणि साहू शान्तिप्रसाद जी आर (१४)




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