श्रीरामार्चन पद्धति सहित | Sriramachan Padhti Sanhita

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Sriramachan Padhti Sanhita by पंडित रघुवर शरण - Pandit Raghuvar Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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/ ६ ७ ) से भिन्‍न नहीं मानते थे। किन्तु आठ दश बर्षो' से यह एक नया विवाद चल पड़ा है, और इसे लेकर इस समाज में बड़ा कोलाहल ओर हलचल मचा हुआ है । यह ऐसा आन्दोलन क्यों खड़ा हुआ, ! इस प्रश्न पर बिचार करने से इसके कई कारण समझ पड़ते हैं। एक कारण तो यह, कि वक्तमान समय में रामानुजीय नाम से जो आचारीबेष्णव प्रसिद्ध हो रहे है, उनमें ओर इस सम्प्रदाय में रीति-रिवाज् और चलन-व्यवहार आदि का बहुत कुछ विलगाव है | दूसरा कारण यह है कि आचारी नाम से जो प्रसिद्ध है इनमें बढ़तेरे हम सबों को अपमान करने लगे और जहाँ तहाँ पत्च सल्कार से युक्त श्रीरामानन्दीय श्रीवष्णयों को फिर से शख चक्र ओर नारायण मन्त्र देना प्रारम्भ किए ओर जो इन से नारायण मन्त्र नहीं लेते उनको साधारणी वेष्णं कहने लगे और नीच दृष्टि से देखने लगे। तीसरा कारण यह है कि पिछले दिन हम स्वों में भजन पूजन की प्रधानता होने के कारण अध्ययन अध्यापन में शिथिलता आगई ओर बाद विवाद में कम जोड़ी हो गयी बस,ये लोग घृणा करने लग गये । वस्तुतः इस ववणढर का प्रधान कारण है, इस प्षम्प्रदृवाय मे कुछ अन घिकारियो का प्रवेश हो जाना,जिन्होंने अपनी' तुम्बाफेरी” यहाँ भी शुरू कर दी । शान्ति प्रिय महात्माओं में भी क्ुब्बता घहरायी। अचल भी हिल गया कुछलोग जीते जी पूजानेकी धुनमें भी इसमें घुसे हैं जो भ्रीरामानुज़ स्वामी जीको द्श गाँलियाँ सुना देता है,बस,वही उस दलका प्रतिष्ठित सेबक गिना जाने लगता है । कुछ लोग आचारियों के अपमान और निन्‍दा से इसी में आकर भी प्रतिशोध के भाष से और कोई माग न देखकर इसमे शामिल हो गये हैं और प्रायः लोग भ्रम में डाले जाकर इनसबों की बातो में राजी हो साथ दे रहे हैं । इन लोगों ने विचारा, कि यदि आचारी लोग हम सबो को नीची नजर से देखते हैं । अपमान करते है, तो हम क्यों इस दशा के लिये इनहे सम्प्रदाय में रहे । अतएव अलग ही होने » में निस्तार सोचा गया। किन्तु थह नहीं सोचा गया, कि इरामें अपनी ही हितनी हानी है, पतन है, कि अपना कुल छोड़कर बन वाटाअ' बन जाये । परन्तु द्ेषषश आज येही हो रहा है। लोग समम रहे है, कि शंमानुजीय नाम से तो आचारी वेष्ण॒व ही प्रसिद्ध हैँ, फिर, इनके अन्त्गंत॒ तो मे पुछलसा सा ही जाऊँगा, अंत्ंबव अंल्ग ही हो जाना ठीक कर




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