महाभारत के प्राण महात्मा कर्ण | Mahabharat Ke Pran Mahatma Karn

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : महाभारत के प्राण महात्मा कर्ण  - Mahabharat Ke Pran Mahatma Karn

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

Add Infomation AboutShri Prabhudutt Brahmachari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सपना, ब्कल श कर याद कर ली थीं। बहुत से छोटे-मोटे संक्षिप्त महाभारत भी पढ़े थे। उन सब को पढ़कर जैसी सब की धारणा होती है, मेरी भी धारणा होगई थी कि पॉँचों पांडव तो धर्म के अवतार हैं ओर दुर्याधन उसके भाई, शक्ुती, कर्ण ये बहुत नीच, धूत्त ओर अर्धम के साज्षान्‌ स्वरूप हैं। बाल्य-काल में हम गाया भी फरतें घे-- शकुनी दुःशासन कर्ण छट़े खल घेरी | मितु काल श्राज महारात लाज गई मेरी। बुस हरे हारिका माय शरण में तेरी । इन सब बातों से मेरे दृदय में रेसी धारणा हो गई थी कि ४ दुर्योधन दुःशासन की भाँति कर्ए भी दुष्ट और अधर्मी है। वह भी भगवान के विमुख और पांडबों का शत्रु है। किन्तु, जब मैंने आरंभ से मद्दाभारत को पढ़ा, तब मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा | जिन कर्ण को मैं ुए्र समता था, उनका चरित्र तो महा- त्माओं से भी बढ़कर है। जिनको असुर दालव समझे बैठा था, वे तो देवनाओं से भी बढ़कर हैँ! जिन्हें में साधारण पात्र सममता था. वे तो मद्दाभारत के प्राण निकल्ले | महाभारत के श्रीक्षष्ण श्रत्मा हैं, कुन्ती मूल-प्रकृति दें, भीष्म महत्तत्व है, द्रोशाचाय श्रंहकार हैं, दुर्योधन मन हैं, उसकेसैकड़ों भाई संकल्प-विकल्प हैं, पाँचों पांडव पंच-महाभूत हैं, द्रौपदी बुढि हैं । इन सबको जीवित . “रखनेवाले कर्ण प्राण हैं। करे के विना हम महाभारत की कल्पता भी नहीं कर सकते | श्री कृष्ण फो छोड़ दीजिये, वे तो पात्र वहीं. हैं, पाओंके निर्माता हैं। उनके विना तो जगत ही नहीं । वे सन के मन, प्राणों के प्राण और आत्मा के भी आत्म हैं। उनके लिये तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता। उन्हें छोड़ देने पर महाभारतमें




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now