चिंतन - मनन जीवाल कला | Chintan - Manan Jivan Kala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 लडे नही, चुनाव करे हम चुनाव लडदते हैं। चुनाव जनतत्र की बुनियाद है। इसम जब लडना ही मूलभूत है तो यह लडने की आदत पड जाती है। गाव-गाव म॑ चुनाव की लडाई शुरू हो जाती है - कभी पचायत के नाम पर तो कभी विधानसभा और ससद के लिए। चुनाव लडना - यह अग्रेजी भाषा का अनुवाद है। यह अनुवाद हमारी परपरा के लिए विकृति बन कर छा गया है। चुनाव की लडाई - जीवन की लडाई बन जाती है। फिर जीवन के सभी क्षेत्रा मे रात दिन युद्ध जैसा वातावरण बन जाता है। विरोध, प्रतिवाद, सघर्ष, एक दूसरे को पराजित करने के हथकडे - यही हमारी जीवन शैली बन जाती है। आओ, हम चुनाव लडे नहीं - चुनाव कर। लोग खडे हैं - हम उन्हें देख, समझे, उनके भावो को टटोल और उनका चुनाव करे। जैसे ही हम चुनाव करगे, चुना हुआ आदमी जन चेतना को समझेगा और उसका सपूर्ण दायित्व और कर्तव्य जनोन्मुख हो जाएगा। वह अपने चुनाव के लिए गर्वित नहीं होगा, चुने जाने के रूप मे जन चेतना के प्रति कृतज्ञ होगा, सेवाभावी होकर विनम्र होगा। चुनाव लडकर - हम जीतकर - उद्दण्ड, धृष्ट, निरकुश और स्वेच्छाचारी हुए हैं। चुनाव मे जनता से चुने जाने पर यानी चुनाव करने की शात सौम्य प्रक्रिया को समझ कर हम जिस भाषा का प्रयोग करेंगे - वह सहयोग की, सेवा को, विनम्रता और मेल मिलाप की होगी। आइए, हम चुनाव न लडे और लडने न दे। हम चुनाव करने की नई प्रक्रिया शुरू करे। अब उम्मीदवार मौन खडे हैं - केवल मतदाता ही दानी बनकर नई भूमिका का निर्माण कर रहे हैं। श्५




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