चिंतन - मनन जीवाल कला | Chintan - Manan Jivan Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अक्षयचन्द्र शर्मा - Akshaychandra Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5 लडे नही, चुनाव करे
हम चुनाव लडदते हैं। चुनाव जनतत्र की बुनियाद है। इसम जब
लडना ही मूलभूत है तो यह लडने की आदत पड जाती है। गाव-गाव
म॑ चुनाव की लडाई शुरू हो जाती है - कभी पचायत के नाम पर तो
कभी विधानसभा और ससद के लिए। चुनाव लडना - यह अग्रेजी भाषा
का अनुवाद है। यह अनुवाद हमारी परपरा के लिए विकृति बन कर छा
गया है।
चुनाव की लडाई - जीवन की लडाई बन जाती है। फिर जीवन
के सभी क्षेत्रा मे रात दिन युद्ध जैसा वातावरण बन जाता है। विरोध,
प्रतिवाद, सघर्ष, एक दूसरे को पराजित करने के हथकडे - यही हमारी
जीवन शैली बन जाती है।
आओ, हम चुनाव लडे नहीं - चुनाव कर। लोग खडे हैं - हम
उन्हें देख, समझे, उनके भावो को टटोल और उनका चुनाव करे। जैसे
ही हम चुनाव करगे, चुना हुआ आदमी जन चेतना को समझेगा और
उसका सपूर्ण दायित्व और कर्तव्य जनोन्मुख हो जाएगा। वह अपने चुनाव
के लिए गर्वित नहीं होगा, चुने जाने के रूप मे जन चेतना के प्रति कृतज्ञ
होगा, सेवाभावी होकर विनम्र होगा।
चुनाव लडकर - हम जीतकर - उद्दण्ड, धृष्ट, निरकुश और
स्वेच्छाचारी हुए हैं। चुनाव मे जनता से चुने जाने पर यानी चुनाव करने
की शात सौम्य प्रक्रिया को समझ कर हम जिस भाषा का प्रयोग करेंगे
- वह सहयोग की, सेवा को, विनम्रता और मेल मिलाप की होगी।
आइए, हम चुनाव न लडे और लडने न दे। हम चुनाव करने की
नई प्रक्रिया शुरू करे। अब उम्मीदवार मौन खडे हैं - केवल मतदाता ही
दानी बनकर नई भूमिका का निर्माण कर रहे हैं।
श्५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...