मुक्तधारा | Mukt Dhara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्५ “यदि बह प्रभु--जिसे मैंने अपना यह शरीर समपण कर दिया है,--सहन कर लेगा तो तुम भी सह ठोंगे ।” बेरागी उत्तरकूटके छोगोंकों घार घार बतलाता है पकि “यह जीवन प्रभुछा दिया हुआ उपद्ार हैं। उस प्रभुका ऋण भत्येक पर है जो उसे चुकाना दोगा।” घनन्षय शिवतराईके लछोगोंको घार बार कह्दता हैं कि में “तुम्हें उस ट्णसे उच्कण नहीं कर सकता । ईशवरका सहारा लेना चाहिए । वही आन्तरिक प्रेरणासे मार्गें दिखायगा। ” शिवतराईके छोग राजसिंद्यासनके लिए दावा करते हैं । उसके विपयमें मी वह कहता हैं “जब तक तुम इस सिंद्ासवको उस प्रभुका नहीं समझते तव तक इस पर किसीका भी दावा नहीं चछ खसकता--राजाका भी नहीं और प्रजासा भी नहीं 1” इस प्रकार सब कुछ प्रभुके अपण कर देना और उसमें निष्ठा रखना आदशे है । धनज्नय सब साधारणके अधिकारोंका बढ़ा समर्थक है। उसने शिवतराईके छोगोंको राजकर देनेसे रोक दिया है और वह राजाके सामने कद्दता हू कि बह कर तुम्दारा नहीं है--अथौत तुम्दारा उस पर कोई अधिकार नहीं । “जो अन्न प्रजाके खानेसे बचता है उसी पर आपका अधिकार है, परन्तु उसके भूखके अन्नकों आप नहीं ले सकते। ”” कर रोकनेकी थात महात्त्मा गाँधीके खेड़ेके सत्याप्रहकी घटनाको कैंसी भ्रच्छी त्तरह स्मरण करा देती है | घनजयमे शिवतराईके लोगोंकी असीम भक्ति हैं । वह भक्ति और श्रद्धा भन्‍्ध विश्वास तक जा पहुँचती हैं। उसकी समता असर्धैसाधारणकी भी महात्मा गॉँधीके प्रति सवेसाधारणकी भक्तिसे भली भौति घमझयमें. की जा सकती है। थे प्रत्येक घातमें घनजयके उपर +िमर हैं और भसक्ति।. उसीकी आज्ञा मानते हें। उन्हें धनंजयकी अलीफिक शक्ति पर विश्वास हैं। उनमैंसे एक कद्दता है कि ४ घनजयका एक शरीर मीदरमें और एक बाहिर है। ” उन्हें द विश्वास हे कि घनजयके रहते हमें कोई हानि नहीं पहुँचा सकता और घनजयकों पकइनेकी भी किसीर्म शक्ति नहीं । ये बाते भी, मद्दात्मा गाँघीके विपयर्मे वर्तमान भारतीय जनतारे जो आव हैं उनकी, समानता करतीए




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