विधि का विधान (भाग्य - रेखा) | Vidhi Ka Vidhan(bhagya Rekha)

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Vidhi Ka Vidhan(bhagya Rekha) by हीरालाल जैन - Heeralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हु ४ ) ८ मचुष्य के समान दी गाय, घोड़ा, हाथी, सिंद, बन्दर झादि गसज पुशु भी 'पनी ब्पनी_ जाति के नर नारी (मादा). के वीये धधा-रज के मिलने से दी उत्पंक्न दोते है, श्रतः 'ाज जिंतने भी गर्यज पशु दिखाई दे रहे हैं वे सभी 'अंपने श्पने पूबंज नर मादा रूप माता पिता की परम्परा से अनादिं काल से ही सिद्ध दोते हैं . ग्मज पशुत्मों के समान ही अरे से उत्पन्न दोने वाले सप, कबूतर, तोता, चिड़िया, मुर्गी छयादि पक्षी भी ब्यपनी शपनी जाति के जर मादा के खंयोग से उत्पन्न हुए झण्डे से उत्पन्न होते है. । उनकी पूर्वज नर मादा परस्परा भी ्मनादि काल की सिद्ध द्दोती है । कोई भी नहीं कह सकता कि पहले कर्बतरी थी या उसका छंडा था । क्योंकि पहले पदल कबूतरी को माना जावे तो प्रश्न होगा कि बिना अ्रण्डा के.चह उत्पन्न कैसे हुई ? यदि पहले 'ंडा साना जावे तो प्रश्न दोगा कि बदद बिना कबूतरी के श्ञाया;कदाँ से ! उत्तर यही मिलेगा कि शणडा कबूतरी से हुआ व्यौर कबूतरी अपनी पूजा कबूतरी से उत्पन्न हुई ।. इस तरदद 'अश्डज जीवों की पूबे- परम्परा भी किसी नियत (खास) समय से नद्दीं मानी जा सकती । 'ग्रनादि काल से ही माननी पढ़ती दै । , . हे . _ झाब घक्षों पर विचार कीजिये, गेहूँ, चना; 'झाम; 'जोमुन, अनार आदि के घूद्ष “ पने अपने बीज॑ से उत्पन्न होते हैं और उनके बीज अपनी जाति के चर्चो से उत्पन्न होते हैं'। इसके सिवाय सनकी उत्पत्ति का अन्य कोई विधि विधान नहीं दै। के सर अर से उत्पन्न होने वाले जितने प्रकार-के -भी 'पेड़ दिखाई दे रहे हैं, वे झपने पव॑ज बीज चुक्ष-परस्परा से




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