अर्थ शास्त्र की रूप रेखा | Arth Shastra Ki Roop Rekha

Arth Shastra Ki Roop Rekha by दयाशंकर दुबे - Dayashankar Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला सध्याय उर्थशास्र क्या है ? मोदन रदता तो उन्नाव में टै, पर उसके चाचा प्रयाग में नोकर एं, इस- लिए माघ के मद्दीने में चदद पनी मां के साथ चाचा के यहां या हुआ है | उसकी मां मे घ-भर प्रिवेखी-संगम में प्रतिदिन स्नान करेगी । गत रविवार को मोहन भी 'यपने चाचा के साथ चिवेशी-स्नान करने तथा वद्दां लगे हुए माघ मेला को देखने के लिए गया था | मेले के पास पहुँचने पर पदले मोहन को कृषि-यदर्शिनी दिखाई पढ़ी । उसने चाचा से कद्दा कि वद्द भी इसे देखेगा । प्रदर्शिनी के परटाल में जाने पर मोदन ने तरद-तरद की मशीनें देखीं | साचा ने उसे बताया कि ये सब खेती करने के काम छाती हैं । मोहन को कुएं से पानी खींचनेवाली मशीन श्रधिक पसन्द झाई । चहां की 'छन्य वस्तुएं भी चद्द देखना चाहता था, पर चाना ने कद्टा कि स्वलो, पहले गंगा जी नहा दावे, फिर लौटते समय इन सब चीज़ों को श्रच्छी तरद देखना | ' बाँघ पर पहुँचते ही मोदन ने कई टलवाइयों की दूकाने' देखीं । छुयदद का समय था | ताज़ी-ताज़ी जलेवी बनाई जा रही थी | कुछ लोग दूकान के पास जलेवी खा रहे थे ) माघ का शुरू था | इसलिये ्रभी कुछ दुकानों पर माल नहीं छाया था | वे खाली पढ़ी थीं । कुछ मज़दुर इधर उघर ज़मीन खोद रहे थे । मोहन




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