कृष्ण - काव्य का तुलनात्मक अध्ययन | Krishn - Kavya Ka Tulanatmak Adhyayan

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Krishn - Kavya Ka Tulanatmak Adhyayan by शंकर केलकर - Shankar Kelakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शपोदपाठ १३ में था | हुप्प बासुदेव का योग-दाचक गाम रहा द्वाया तथा धागद उसके बर्चे धोतक के हम में पी प्रयुक्त हुआ हो । महाभारत कार में बर्ध की किचित्‌ विभिशता के कारण केश कुप्ण को ही महीं, बरत्‌ जद त एगं ड्रोपटी कौ सी कृष्ण एवं कृप्पा कह्ठा दया है। । डॉर डेशकर के मतागुसार भा भारत में एक धो्पे में ही छाए थे सपितु उनके कई श्स समय स्रमय पर आए थ॑।* प्ामाय आाएों से धर्ष-मलतता के कारण यदि बासुरेव कृष्ण का किसी कार्मिक दर का बंधज मान पछिजा बाए हो ठत्काछौन परिस्वितियों से कोई बविसंपति गहीं होती । स्पष्ट ही $ंस, प्िपुपाक, जरासरम, काजयवत भादि साय जो भासुदेग हृप्ण के छमकाक्ीम थे प्मार्ये-स॑स्कृषि से सम्दस्षित वहीं बात पड़ते बरत्‌ किप्ती मार्मेदर सम्यदा के अनुपामी बाग पड़े हैं। दूसरी सम्मागमा मह भी हो एकदी है कि सकपेण प्म्द जो बासुदेव के साथ स्िक्तातेशों में अंकित मिलता है काछत्सर में अपन्नंध होकर भीकृष्य बम गजा हू । बासुदंव की स्सक्तिवाचक घंजा मौर 'कृप्ण का गोप्र गाम होना बौर्ों के 'पटट भ्रातक' जौर 'महा उम्मग जातक से भी छिड़ होठा है ।* उपयु कं बाषारों ये पिद्ध होता है कि महामारत कार के पूर्व से ही कृष्प और बासुदेव एक हो ब्यत्ित ये तमा शसुदेड प्रौर इृष्ण को दो भिम्त ध्य्क्ति समझता सयठ गद्दी है । बिद्ानों ते सीता को महामारठ के प्राच्रीम अंधों में है माता है। भरीता में कही भौ बासुबेग को ताष्ययण महीं कहा गया है। स्पप्ट ही गीता के समस्ययारी दृष्टिकोस एवं परमतत्त्व के अस्तित्व कौ स्थापता को देखते हुए पीठा कौ रचना शारायबीय धर्म के पूर्व की सिद्ध होती है। महाभारत एवं पुराणों के मापार पर बासुदंग-कृष्ण एक अत्पात प्रात्रीन स्पकित सिद्ध होते हैं, पर चिस आजार को कसौटी पर बर्तमास धमस्या को कसा पण है उस आधार की प्राच्ीवता पर भी विद्ार्मों मैं पर्याप्व मतभेद रहा है। इतना समी मानते हैं कि महाभारत शपने उपछ|्ध रूप में ईछा-पूर्ण राठवी घठाऋरी से सेकर ईसा पूर्व दौठरी बताम्दी को रचमा है। कुछ विद्वान महामारत कर रचताड़ाझ ई« पू» दतवी प्रताश्दी ते छेरर सातवीं ध्रताम्दी टक् मातते हैं ।*पर इठता तिश्चित है कि पाणचिति-कांक्र में होयों को महाभारत की भूछ कथा भल्ती अकार दिदित थी । इस भृछ्त कथा में डितने ही सेएक हशों त चुड़ यए हों रह तो मारमा ही पड़ठा है कि कुप्ण, बजुन और मद्दामारत युद्ध पराणिति से पम्मशत' कई पारियों पहझे हो हुके ने क्योंकि इस मुंद्ध कौ समस्त कषा हृप्ण भर यतुत पर ही भामारित है_ ता इसमे से एक को मी इटा देसे पर कदा का अस्तित्व ही गई रह बांदा । इस प्रकार दासुदेग हप्ण का ऐतिहासिक अस्तित्व ईसा पूर्ष कम-सेकम हैभार-आारइ सौ धर्ष सिद्ध होता है। जता इस मिप्कर्पे पर पहुँचमा अनुचित न होगा कि कान्न में हृप्ण का वामुदेव साम रूषिक प्र्ाार में था 6द्या परवर्ती रा यें मोपाक्त हैप्ट कौ स्थापता के शाब-साद कृष्ण गाम ने प्रश्चिद्धि प्राप्त की ता इस पंद् के स्ववरण रा के कारण हृप्ण के बाकुदेव से फिल्त होने को प्रासक मिषाएणाराएँ अंकुरित होते ०-5 ? ओकुब्द--रिक्ष लाइक एण्ड रोपिप्स : डी एयर बाण; पूरिका [ डर खफा डास-करेरा : अस्टाकश खबड़, साल ह) कर सात, बू० ९ ) १, ३९ शे« : सरोडारकर, १० १४-१५ ४ शंरेबाद शेशेटे रिक है दिराज ? सजीश कपूर (यरस्स झड़ इंटिया, २९-६ ११६०) 1




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