श्री गोवर्द्धन - अभिनन्दन - ग्रन्थ | Shri Govarddhan - Abhinandan - Granth

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Shri Govarddhan - Abhinandan - Granth by सत्य नारायण शास्त्री - Satya Narayan Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सा यहां से दूर-पहुत दूर-क्षितिज के पास घूम चमक रद्दा है। उसकी बाप हर फूल और पौधे पनप रहे हैं। इस पर भी फोई बुद्धिदीन प्राणी रे भि अपनो अंगुलियों से ढांप कर यह फट्दे कि सूर्य दे ही नहीं, तो कहने का कोई मद्दत्त्व नहीं होगा। सो प्रकार जो शिक्षा की उपयोगिता को समझता हुआ भी उसके अनुकूल मन फरता, बह स्वयं अपने लिए दो नहीं, यलिकर सम्पूण गाष्ट्र के लिए सतरनाक | ध्मग्ना संग पतरे से खाली नद्रों दै। उसकी उपस्थिति देश भौर समाज के * मारो धमंगठ की सूचक दै। शिक्षा में असीम परिवेक्षण-शक्ति है। यह सृश्म फेम पलु के मम को समझे छेतो है। यह विश्वपन्पृत्त की भावनाओं को दृट पेहै। यह हमें सिखाती है कि यह सारा संसार एक ही पिता के सप का फल राघर के सम्पूर्ण जीवों में उसो फी आत्मा के दर्शन द्वोते हैं। झात्मा भौर गराएक है, इस गृह रहस्य फो खोज द्वमारी इस सर्बंगुअ-उजागरी शिक्षा गए हो हो गई है पैपार के किसी भी शमुभवी गणितत से पृद्धिपे हि एड भौर पक हिगने 1 यद् निःसंकोच उत्तर देगा कि एक और एक दो दोते है। टैहिन दमारो पु शिक्षा के घठ पर फली-पुल्टी एमारी रस्वविद्या पहतों है हि ए४ भोर दंड, एक हैं। भुनकर आश्चर्य होता है, ऐेकिन सममे रेते पर छानरद बा पाप रता। वाजुतद: हेयर और हममें कोई गोटिफ अग्यर नहों है। देइल माया धर मोर पं मारी आर्य पर छा ज्ञामे है कारण हम उसे नहीं देख सहठे | बरि छुूमी बने बो देश भो करते है हो मसाएे वे दपण हरे साहू इस संसार में दस कद मद को पहुत शाबले दिखाई देतो है। परनदु हएट बसे करखे भुद बाते पर / शाबीर सामने ञा ज्ञातो है। इस बास्वविक शिक्षा ई छए वो अच्छी सेगरभ, हैने पर बी बोई सिसो बा छट्ति नहों बर सररू। चगुना के मुरस्य लट पर एक दिन बरेलो बा सप्नद्वारा हे नेडे सावन गे दे (९ ४॥ प्रेम-एसंग चल रहा था। धंशों को शादइ कान हे मब शो पं । गाने बाला रद तल्मद ८'। झपुर मगर पर छा रहा ढ८ा। इसे दुोच शुरडे इाजइ ६ राना' हाथ मध्यर को छाप पर रस्‍्द दिए! ६४ जद करत दे सम्पा




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