आर्षग्रन्थावली तैत्तिरीय उपनिषद | Aarshgranthawali Taittiriya Upnishad

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Aarshgranthawali Taittiriya Upnishad by पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मु [२1] शिक्ावतली, अनु० ९ शिद्धार्व्ती जो आरण्यक में सातवां प्रषाठक है, और पहाँ उपनिषद्‌ में पहला अध्याय है, उसें। १२ अनुवाक हैं | इस अध्याय में हर एक अलुवाक के समाप्त होने पर कुछ भतीकें दीगई हैं, और फिर अध्याय के समाप्त होने पर एक दूसरे ही प्रकार की मतीके दी- गई हैं, उनके समझने में लोगों को प्रायः प्रान्ति हुई हैं। हम उनका आशय साथरखोलते जाएंगे। त्रह्मानन्द्वस्सी, ने आरण्यक में आठवां प्रपाठक और उर्पनिषद्‌ का दूसरा अध्याय है, उप्तमें & अनुवाक हैं । भूगुवल्ली जो आरणयक में नवां मपाठक और उपनिपद्‌ का तीप्तरा अध्याय है, उस १९ अनुवाक हैं । इन दोनों अध्यायें। में एक २ अनुबाक की समाप्ति में तो कोई प्रतीक नहीं दीगई, जेसे कि पहले अध्याय में थी,किन्तु फेवल अध्याय की समाए में प्रतीके हैं, और वे एक नए ढंग पर हैं । पानुष जीवन का परम लक्ष्य अभय पद में स्थिति है, जो प्रह्मज्ञान से भाप्त होती है, और ्रह्मज्ञान उन शिक्षाओं पर चलेन से पिल्ता है, जो शिक्तावरली में कही हैं। विशेषत: ४, < और १० वे अतुवाक की शिक्षाएं लोक परलोक दोनोंके सुधारने वाली हैं। पहुला अज्नवाक ॥ १॥ ओमशन्नो मित्रः शंवरुणः शैनो मवल्व्यमा । श॑ न इन्द्रो बृहस्पतेः। शनो विष्णुरूऋम। नमो बह्यणे। ' नमस्ते वायो । लमव प्रत्यक्ष बह्मासि । वामेवप्रत्यक्त ब्रह्म वादृष्यामि।ऋते वदष्यामि।कर््य॑ वरदिष्यामि ।




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