आर्ष ग्रंथावली भाग 1 | Arsha Granthawali Part 1

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Arsha Granthawali Part 1 by पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९४ बेदोपदेशः द्यति । वेदस्य परिग्रहेणायुषते, त्यागेन च सत्यु: प्रभवतीति यथोक्तं मनुना-- अनक्यासेन वेदानामाचारस्य च वजनात्‌। आल स्यादन्नदोषाच खल्युविप्राञ्जिघांसति ॥ ( मड ०५। ५, यथादयन्नदोषा्थारस्याच्था वाऽऽचारस्य वर्जनान्मानवान्‌ गृत्युजघां पति, एवमेव वेदानामनभ्यासेनापि सरत्युनिांसति । फरान्तराण्यपि तेनेव भगवतोपदिषटणने- यः स्वाध्याय मधीतेऽब्दं विधिना नियतः शुचिः । तस्य नित्येक्षरत्येष पयोदधिघृतं मधु मनु २।९०७) भी सुधरता है । वेदके स्वीकार से आयु बढ़ता है और त्याग से सत्यु दबारेता हे जेसाकि मनु ने कहा हैं । वेदों का अभ्यास न करने से, आचार के छोड़देने से, आठस्य से, और अन्न के दोष से सत्यु विद्वानों को मारना चाहता है ( मनु ५ । ४ ) जैसा अन्न के दोष से, और जेसा आलस्य से, वा जैसा आ- चार के सागने से स्त्यु मनुष्यों को मारने की इच्छा करता दै वैसे ही वेदों के सागने से भी सत्यु मारना चाहता है॥ ` आयु दॉद्धि के सिवा और फल भी भगवान मनु ने बतलाएडें- जो शुद्ध पवित्र होकर नियमसे विधि पूर्वक वर्षभर स्वाध्याय पढ़ता है । उसके हां यह स्वाध्याय सदा दूध दही थी और शहद की घाराएं बहाता हे ( अर्थाद उसके जीवन को पुष्ट और शुद्ध रखने वाढे पदार्थ उप्तके घरमे पानीकी तरद वहत दै) (मनु ०२।१०७)




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