श्री माधवराम सुखसागर | Shrimadhavramsukh Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5 याधवराम सुखसागर।
दो एकदंत सुखसदन विद ब्यापक शुध जो अकास ॥
अखिल विश्वके नाथ तुम करो सो मम्र उखास ७
क० | प्ीरसिन्धु सुख माहि अहिशय्या सेनकर पद पु मानो नीत सम के
मतलाही से बेहे। चारिकर माही दर गंदा ओऔसरोज चक्की भृगुपाद गरे सके अंगद
पुताही है॥ जिनका सुपदवार सब लोक मोश्षकरे परे त्रिपुरारि सुलसदाशिरमाहीं है।
ऐसे भगवान लक्ष्मी के पति सुख॒दायी जिनका सुनामलिये मर दुखनासी है ८ मंगल
मृरति श्याम विष्णु छृपाल इश सेवकन के दुख देख करत निहाल है। परे भीर देवन
को तिने पद माहिपरे विविध ओतारि थारि सुंस्लकों पाले है ॥ परठपकारी कोउ
विष्णु समान नाहीं चराचर जीवनके सदा सो सहाई है। याते ताकी पूजन सुमंगल
सफल सदा ऐसे मधुदूदन को हमरी नमामी है ६ गिरिजा के पति भोलानाथ जग
मूलआदि जिनका सुज्ञान तीनकाल सो आवाधहे | जिनके सो वारयेअंग गणपति
मात बसे देवगण आदि सब ध्यानकों लगांगे है ॥ गरसे भंग गंग शीशपेनु वाल
वाहन सामी चन्ध चूड़ामणि जयमें विशजे है। गले व्याल रुंडमाल नित सिहखाल
ओह तीन शूल उमर केल[सपति चिदृहे १० जिनका सुनाम लिये कालइख त्रास
पावे कामरिएु दयासिन्धु सदा निष्काप है। अंग में ससम शोगे मानों श्याम घटा
चढ़ि प्रातकाल श्वेतनेन छविपावै है ॥ तीन नेन तीन लोक सदा सो प्रकाशकरे .
लाथनके नाथ मुँह मांगे फल देंवे है। उतपति पालन सैहार सोभविन करे जिनका
प्रकाश इन्हु सरज प्रकाशी है ११ देशकालराहित शिव कालहके काल महानाम रूंप
भाहि जिन आपके अकाशहै | योगीजन जिन का.सो निशिदिन ध्यानकरे पाय
ज्ञान निजरूप तापको नशे है ॥ अंतमाहिं वपु त्याग सदा शिवरूप है पंशरभूत
देह त्याग भगमें न भावे है । ऐसे शिवनाथ काहि हमरी नामी सदा जिनेकेसुकृत
'अध विप्त नशावे है ॥ १९॥
स० || हरीहर रुपधेे गुरु नानक वेदीकुल जगमाहि उदोरे। रघुबंश बिषे तिनकी
शुभ पद्धति वाहुज परमसतोगुण॒धघारे ॥ सुरमानव दयत गन्धते यक्ष किन्नर सिद्ध
भुनीश महीपति सारे । वेदअर्थ अपारसों कीन तिने संग सिधसकी बहुभांति
हे ॥् ३
देखार १३ धर्म विरोधिनवालेनको मानभंग प्रतिष्ठासों दीनउठाये.। दशु चार भवन
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सदमाहि फिर जहँ बेंद परम नहिं धम्म चलाये ॥ जेंता विषे रघुबंशजये शुभ
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