निर्माल्य विनियोग | Nirmalya Viniyog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
श्र परसे निर्माल्य-द्रृष्य ऊपर पूजारी-उपाध्यायका सामित्त है
एपा आगममप्रमाणसे पण्डितनीसे सिद्ध होने नहीं पाया। अब यक्ति
प्रमाणसे कैप्ता सिद्ध होता है प्रो देखेंगे । हु
पण्डतनी कहते हैं कि- “ अर्पित द्वव्यको ग्रहण करनैके नियोगी
मनुष्य आ्राचीन प्मयमें भी थ हैप्ते कि आभाह हैं। अर्पात् उप्त
ट्रव्यकी लेनेका वहे जिसे ०धिकार नहीं है | यही बात निर्माल्य
द्रव्यके अहणके निपघसे दिखाई गई है। ”
प्राचीन मय, भगवान् वृषमदेदसे ढग!कर अतिम तीथंकर महा-
वीर तकका गिना जाता है | तो इस प्राचीन समयमें निर्मार्य ग्रहण
बरनेवाले कोन कोन थे उनका वर्णन किप्त परराणमें है वह पंढितनीको
बतलाना चाहिये था | यदि उप्त प्राचीन प्मयके पुर.णोंमें नहीं मिह्ता
होगा तो किप्त प्राचीन प्मयमे-३द्वासे कहांतक-ऐसे नियोगी मनुष्यका
वन पाण जाता है सो लिखना चाहिये था।
नियोगी मतुष्यका अथे पंडितनीके अमित्रायस्े-मो देवकी सेवा
करता है प्तो नियोगी मनुष्य ऐसा होता है।
देवकी सेका अनेक मरुप्य अनेक प्रकारसे करते हैं बिध्े-कोई
मदिरमें झाड़ू बुहारी देता है, कोई प्रश्नाठ करता है, कोई पूनन करता
है, कोई अभिपेक् बरता है, कोई दीवाबत्ती करता है; कोई मक्तापर
छुनाता है, कोई सुत्रगीका पाठ छुनाता है, कोई शाज्त छुनाता है, भोनक
1धयव मनन गाते हैं, कोई चौपढा माता है; नेहा कि शुषा सतोममें
हित हैं-- ु
४ देबंद्रास्तत मजावानि विदधुर्दबांगना मंगल“
स्या पेढः शरदिदुनिर्मलयशों गंधपेदेवा जगु। ॥
शेपाश्वापि यथा नियोगमात्रिकाः सेवां सुराथाकिरे
तह देव वर्य विदृध्म शत सथ्ित्त तु दोलायंतें ॥२१५
अपीद--मगवानका देवेंद्रोने अभिषेक्र किया ( नन््त करपाणिक
| ))
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