स्मारिका जयपुर दिगंबर जैन मंदिर परिचय | Samarik Jaipur Degbhar Jain Mandir Parichay

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Samarik Jaipur Degbhar Jain Mandir Parichay  by अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ - Anoopchandra Nyaytirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৬০৫৬০০০৬০০০ श्राचाये कृत्वकून्द विरचित-'तिरुक्कूरल' से १-- वही सबसे योग्य राजदूत है जिसको समुचित क्षेत्र श्रौर समुचितं समय की परख है, जो श्रषने कत्तेन्य को जानता है तथा जो बोलने से पहले श्रपने शब्दो को जाच लेता है | २्--मृत्यु का सामना होने पर भी सच्चा राजदूत ग्रपने कर्तव्य से विचलित नही होता बल्कि श्रपने स्वामो के कये की सिद्धि के लिये पूरा यल करता है । ३--जो व्यक्ति राजाभो के साथ रहना चाहता है, उसको चाहिए कि वह उस आदमी के समान व्यवहार करे, जो भ्राग के सामने बैठकर तापता है, उसको न तो भ्रति समीप जाना चाहिए न भ्रति दूर । ४--हादिकं भाव को विश्वस्त रूप से जान लेने वाले मनुष्य को देवता समझो । ५--जो आखे एक ही दृष्टि मे दूसरे के मनोगत्‌ भावों को नही भाष सकती उनकी इन्द्रियो मे विशेषता ही व्या ? ६--बुद्धिमान लोगो के सामने असमर्थ और श्रसफल सिद्ध होना धर्म मार्ग से पतित हो जाने के समान है । ७--अपने मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के समक्ष भाषण करना ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार भ्रमृत को मलिन स्थान पर डाल देना । ८--णो व्यक्ति ज्ञानी मनुष्यों के समुदाय मे अपने सिद्धान्तो पर दृढ रह सकता है वहो विद्वानों मे विद्वान माना जाता है । ६-जो मनुष्य ज्ञानी है लेकिन विज्ञजनो के सामने भाने मे डरते है वे श्रज्ञानियों से भी गये बीते है । १०-वही श्रेष्ठ देश है जो धन की विपुलता से जनता का प्रीतिभाजन हो और धृशित रोगो से मुक्तं होकर समृद्धिशाली हो । द जयपुर दिगम्बर जैन मन्दिर परिचयः स्मारिका न 25




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