निर्माल्य विनियोग | Nirmalya Viniyog

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Nirmalya Viniyog by अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ - Anoopchandra Nyaytirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) श्र परसे निर्माल्य-द्रृष्य ऊपर पूजारी-उपाध्यायका सामित्त है एपा आगममप्रमाणसे पण्डितनीसे सिद्ध होने नहीं पाया। अब यक्ति प्रमाणसे कैप्ता सिद्ध होता है प्रो देखेंगे । हु पण्डतनी कहते हैं कि- “ अर्पित द्वव्यको ग्रहण करनैके नियोगी मनुष्य आ्राचीन प्मयमें भी थ हैप्ते कि आभाह हैं। अर्पात्‌ उप्त ट्रव्यकी लेनेका वहे जिसे ०धिकार नहीं है | यही बात निर्माल्य द्रव्यके अहणके निपघसे दिखाई गई है। ” प्राचीन मय, भगवान्‌ वृषमदेदसे ढग!कर अतिम तीथंकर महा- वीर तकका गिना जाता है | तो इस प्राचीन समयमें निर्मार्य ग्रहण बरनेवाले कोन कोन थे उनका वर्णन किप्त परराणमें है वह पंढितनीको बतलाना चाहिये था | यदि उप्त प्राचीन प्मयके पुर.णोंमें नहीं मिह्ता होगा तो किप्त प्राचीन प्मयमे-३द्वासे कहांतक-ऐसे नियोगी मनुष्यका वन पाण जाता है सो लिखना चाहिये था। नियोगी मतुष्यका अथे पंडितनीके अमित्रायस्े-मो देवकी सेवा करता है प्तो नियोगी मनुष्य ऐसा होता है। देवकी सेका अनेक मरुप्य अनेक प्रकारसे करते हैं बिध्े-कोई मदिरमें झाड़ू बुहारी देता है, कोई प्रश्नाठ करता है, कोई पूनन करता है, कोई अभिपेक् बरता है, कोई दीवाबत्ती करता है; कोई मक्तापर छुनाता है, कोई सुत्रगीका पाठ छुनाता है, कोई शाज्त छुनाता है, भोनक 1धयव मनन गाते हैं, कोई चौपढा माता है; नेहा कि शुषा सतोममें हित हैं-- ु ४ देबंद्रास्तत मजावानि विदधुर्दबांगना मंगल“ स्या पेढः शरदिदुनिर्मलयशों गंधपेदेवा जगु। ॥ शेपाश्वापि यथा नियोगमात्रिकाः सेवां सुराथाकिरे तह देव वर्य विदृध्म शत सथ्ित्त तु दोलायंतें ॥२१५ अपीद--मगवानका देवेंद्रोने अभिषेक्र किया ( नन््त करपाणिक | ))




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