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Madhyam Men by शम्भूनाथ सिंह - Shambhunath Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुन तो कि में उन संकेशों का ग्राहक सिद्ध संवाहक नहीं हूँ, भझासकत भोवता हूँ । वाणीहीन बता हूँ (प्रायः बयता ही हूँ!) ( सौह कवच में सिपटा ज्वाला में गलता हूँ। झभिशप्त प्रतिमा (प्रस्तरीमूत भात्मा) हैं! घुटता हूँ, दूदता हूँ! झो मेरे निकटस्थ - मंत्रविद्‌ “मै” सुमसे चल कर भी जो मुश्त तक झ्ाज तक नहीं पहुँचे पझपने उन गूढ़ संकेतों से छूकर छुम मुझे श्ापमुक्‍त्त करो; डूटे यह मेरे और 'भेरे”! बीच का प्रमेध लौहावरण मुक्त बर्ने हल मुझ तक के सब सम्प्रेषण 1 ््‌ १७




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