जायसी का पदमावत शास्त्रीय भाष्य | Jaysi Ka Padmawat Shastriya Bhashya

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Jaysi Ka Padmawat Shastriya Bhashya by गोविन्द त्रिगुणायत - Govind Trigunayat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्तुति खण्ड भर कीन्‍्हेसि बरन सेत औ स्यामा । कीन्हेंसि भूख नीद॒विसरामा ॥। कीन्हेंसि पान फूल बहू भोगु । कीन्हेसि बहु ओषद बहु रोगू ॥ निमिख न लाग करत ओहि सवे कीन्ह पल एक । गगन अंतरिख राखा बाज खंभ बिनु टेक ॥ २॥ [इस अवतरण मे कवि ने परमात्मा के कतृंत्व भाव का ही विस्तार से वर्णन किया है 1] उस परमात्मा ने सात अपार समुद्रों की सुप्टि की । उसने सुमेरु और किष्किन्धा नामक महान पर्वत श्रेणियाँ बनाई । नदी ताल और झरनो की भी उसने रचना की । मगर तथा विविध प्रकार की मछलियों का सृप्टा भी वही है । उसने सीपियाँ बनाई और उसने अन्तराल मे मोती प्रतिष्ठित कर दिए । विविध प्रकार के सगो की रचना भी उसने की । वनससूहो की रचना भी उसने की और उनमे पाई जाने वाली जड़ी बूटियाँ भी उसी की बनाई हुई है । ताड खजूर और अन्य प्रकार के उत्तम वृक्ष भी उसके रचे हुए है । अरण्यो मे पाए जाने वाले जगली पशु भी उसी के बनाए हुए है । पक्षियों को जो मनवाछित रूप से उडते है भी उसी ने रचा है। श्याम और श्वेत वर्ण भी उसी के बनाए हुए है । भूख नीद और विश्वाम का क्रम भी उसी ने बनाया है । पान फूल और अनेक प्रकार के अन्य खाद्य पदार्थ भी उसी की रचना है । विविध प्रकार की औपधियों और रोगों का नियामक भी वही है । इस प्रकार के वहुरूपी एव इन्द्वात्मक ससार की रचना करने मे उसे एक निमष भी नहीं लगा । निमेप के साठवे भाग या पल भर मे ही उसकी इच्छा से यह जगत उत्पन्न हो गया । यह आकाश अन्तरिक्ष मे बिना किसी खम्भे के अथवा अन्य किसी प्रकार की टेक के उसके प्रताप से ही ठहरा हुआ है । टिप्पणी -- (१) सात-समुद्र--पुराणो मे सात समुद्रो के नाम इस प्रकार गिनाए है--क्षार दुग्घ दघि घृत इक्षुरस मद्य स्वाद और जल । किन्तु जायसी ने सात समुद्रो के नाम इनसे भिन्न दिए है। वे है--क्षार क्षीर दधि उदघि सुरा किल- किला और मानसर । जायसी द्वारा कल्पित नाम सम्भवत. सूफी साधना से अधिक सम्बन्धित है । कुछ को उन्होने जानबूझ कर तोडा-मरोड़ा है । ऐसा उन्होंने क्यो किया स्पष्ट नहीं कहा जा सकता । मेरी धारणा है कि उन्हे सात समुद्रो के नाम स्मरण न थे । जो नाम स्मरण थे उन्हे उन्होंने ग्रहण कर लिया और शेष नाम कल्पित कर लिए । / डा० अग्रवाल ने सात के स्थान पर हेव पाठ दिया है । हेव का अर्थ हिम है । हेव॑ का भर्थे स्वर्ण भी लिया जा सकता है । (२) साउज--इसका अर्थ पशु है । संस्कृत के श्वापद शब्द का यह अपश्रष्ट रूप है । (३) निमिष--पलक मारने भर के समय को निमिष कहते है । साघारण पल




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