गुलामी से उद्धार | Gulami Se Uddhar

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Gulami Se Uddhar by मूलचन्द्र अग्रवाल - Moolchandra Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय | श्ह अपेक्षा शारीरिक काम करनेवार्लोफा फथन कहीं अधिक टीफ होगा, क्यों कि सानसिक कामसे शारीरिक काम कहीं अधिक आवश्यक और महत्वफा है। मानसिक भोजन तो बिना किसी रुकाचटफे हरएक जादमीकी दिया जञा सकता है, पफर्मोकि देनेले डसकी वृद्धि होती है, परन्तु शरोर पुष्ट करनेधाला अन्न देनेमें बडी याधा है, क्योंकि जो पैदा करता है उसे ही पहले उसकी आवश्यकता है। यदि धमारे लिये परिश्रम करनेवाले मजूर अपनी स्वाभाविक मार्मे प्रकट करने छगें, तो हम घया उत्तर दे सकते हैं। हम उन भा्गोकी किस तरह पूरा कर सकते हैं। खार्थरमें मप्त होकर श्म तो भय यह शी नहीं जानते कि मजूरोंकी क्या आवश्यकताए' हैं। हम श्रमजीधियोंके रहन सहनफा ढड्ू, विचा- सोंका ढजू भौर उनकी भाषा सी भूल गये । एम खार्थमें यदहातफ अन्‍्धे घन गये कि हमें इस खातका भी पता न रहा कि हमने फिख वह श्यसे अपना घाये आरम्भ किया था। जिन छोमों- की सेधा फरनेंमें में अपना जीवन बिताना था उन्हें तो हम अपरिचित मान थेंठे कौर जब उनकी सेवा फरनमैमें नहीं, बहिक उनके सर्बन्धमें ज्ञानकारी पैदा करनेके लिये अपना ज्ञीचच व्यतीत करते हैं। अपने आराम भौर जआनन्दके लिये एम उनके प्रतिनिधि बन जाते हैं। दम यद षात मिद्कुछ दी भूछ गये छि उनका अध्ययन नहीं, /उनष्ही सेवा दमारा धर्म था। $




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