सुत्तागमे | Suttagame
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
555
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशकीय
4 आजके इस वैज्ञानिक युगमें जहां मनुष्यने विज्ञानके हारा नई २ व्यवहारो-
पयोगी वस्तुओंका आविष्कार किया है वहां सहान् से महान् संहारक अणुबम
जैसे शत्रोंका भी । यह सव किसलिए ? मेरी सत्ता समस्त संसार पर छा जाए,
में ही सबका प्रभु हो जाऊं, एक ओर तो शब्रोंकी होड़सें एक देश दूसरे देशसे
आगे निकल जाना चाहता है तव दूसरी ओर आधुनिक जनता का अधिक भाग
बुद्धनो न चाहकर शांतिकी झंखना करता है परल्चु शांति शत्रोंके वल्यूते पर
किए गए युद्धोंसे नहीं मिल सकती बांतिका वास तो आध्यात्मिकतामे हे भोतिक
तामें नहीं और ज्ञातपुत्र महाबीर भगवानके छारा प्रतिपादित आगम
आध्यात्मिकतासे भरपूर हैं, उस आध्यात्मिकताके प्रसारके लिए ज्ञातपुत्र महावीर
लैनसंघानुयायी उम्नविहारी जैन मुनि १०८ श्रीफूल्चंद्रजी महाराज की विशुद्ध
अेरणासे समितिने आगमोंके प्रकाशनका कार्य अपने हाथमें लिया हू जिसका
प्रथम फल आपके सन्मुख है। ३० सत्रोंढो खुत्तागर्मा के रूपने एक हा
जिल्द्म देनेकी उत्कट इच्छा होते हुए भी पंबराजका देह-सन्न बद जानेसे
११ अंगोका प्रथम अंश अलग बनाना पड़ा । इसके प्रकाशन जिन ५ महान
भावोंने प्रत्यक्ष था परोक्ष रपमें किसी भी प्रकारका लिनवाणीडी सेतरा की
उनका हम द्वार्टिक आभार मानते हैं, साथ ही सप्नोके निकले
के निकले गए शलग
प्रकाशनों पर जिन २ सनिवरोंने अपनी ५ झन सम्मसिद सिजवाई
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शनुणशीत हैं और सहधर्मी महासुभावोंसे निवेदन हि मे एस पॉित काइस
रसाहयोग इुबार एुसारे उत्साद को बटाए ।
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