कृतिवास रामायण | Kritiwas Ramayan

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Book Image : कृतिवास रामायण  - Kritiwas Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ अनुवादक का वक़व्य संत कृत्तिवास का समय गोस्वामी तुलसीदास जी से लगभग एक शताब्दी पूर्व होने के वावजूद उनका जन्म-स्थान, कुल और वश-परिचय असदिग्ध और सुविल्यात है। सन्‌ ७३२ ३० में बंग-नरेश “आदिशुरः द्वारा, यज्ञ के लिए कान्यकुच्ज देश से आमंत्रित और फिर बंगाल में ही वस गये पॉच ब्राह्मण-प्रवरों में सुपूज्य भारद्वाज गोत्रीय शश्रीहृष! परिडत से तेरहरवों पीढ़ी में 'साघवाचाय! का जन्म हुआ । माधवाचाये के “उत्साह”, उत्साह के “आरयित', आयित के “उद्गव', उद्धव के (शिवः और शिव के पुत्र 'न॒सिंह? ओमा हुए, जो सुवर्सप्राम के अधिपति महाराज 'वेदानुज' के प्रधान मंत्री थे। आज से लगभग ६२५४ वर्ष पूव्र वेदानुज-काल में अराजकता उत्पन्न हो जाने के फलरबहूप नसिंद ओमा ने सुवरणप्राम का परित्याग कर उस समय के अति समृद्धिशाली 'कृलिया? ग्राम में जाकर निवास किया। कृत्तिवास के “आत्मपरिचय' तथा इतिहास के चिद्वानों के मत से प्रकट है कि 'फूलिया? धन-धान्य पूरित और मनोरम पुप्ोद्यानों से प्रफुल्लित, गगाभागीरथी के उत्तर-पू्े तट पर, श्रीमानों एवं प्रकाण्ड परिडतों का उस समय प्रमुख पीठस्थान था। फूलिया, वेलगड़े, मालीपोत्ता, सिमला, नवला, ग्रश्मति पल्चग्राम संगठित होकर 'फूलिया-समाजः के नाम से प्रसिद्ध थे । कृत्तिवास से पूत्रे और पश्चात्‌ इस जागती भूमि ने अनेक भारतप्रसिद्ध विद्वानों एव साधकों को जन्म दिया | स्वय कृत्तिवास के अति पवित्र कुल में ही “'अन्नवामंगल” आदि के रचयिता 'भारतचन्द्र गुणाकर' सुविख्यात स्मार्त और नेय्यायिक “वासुद्ेव साव्वेभौम', ओमा ( उपाध्याय ) वंश के प्रथम 'मुखोपाध्याय” . उपाधिधारी “श्रीगर्भ', 'रासचद्र विद्यालकार', 'सर आशुततोप मुखर्जी! और अभी कल ही हम से बिल्लग हुए, राष्ट्र के लिये प्रा्ण,त्सगे करनेवाले 'स्व० श्यामाप्रसाद मुखर्जी! आदि नररत्नों नेया तो इसी पुण्यभूभे में जन्म लिया अथवा “फूलिया के मुखर्जी' के पुनीत पारेवार का होने के नाते अपनी कुलीनता का गये करते रहे हैं | यहीं पर उल्ले खनीय है कि भारत के सुव्शकलश साहित्य- सम्राट वकिमचट्र चट्टोपाध्याय से आठ पीढी पूत्र उनके पूत्रज अवस्थी गगानन्द “चटर्जीवश” के अतिकुलीन 'फृलिया घराने! के आदिपुरुष थे और फूलिया के ही निवासी थे। आज कालस्नोत के प्रवाह में पडकर “फूलिया” गंगा से काफी दूर हटकर एक साथारण आम मात्र रह गया है। सत कृत्तिबास की यादगार उनका धदोलमञ्च! आज भी एक दीले की शक्ल में वहा विराजमान है | अस्तु उस्ती फ़लिया में नुसिंह ओमका ने सुबर्णंभाम से आकर निवास किया | न॒र्सिह ओमा के “गर्भेश्चर', गर्भश्वर के पलुरारि! मुरारि के ठतीय पुत्र 'वनमाली” और इन्ही वनमाला का पत्नी मालिनी! के गभ से उत्पन्न छु पुत्र ओर एक कन्या में कृत्तिवास क्दाचित्‌ प्येठ थ। इस प्रकार इस पुनीत चश के प्रथम वगवासी “आरहर्पः वीं पीठी में सन्‍त कृत्तिबास ने जन्म लिया। छत्तिवास ने स्व॒राचित आत्मपरिचय' नामक प्रचन्य में अपने जन्मदिवस के संबध में उस प्रशार लिया हैं -- /आ देस्यवार श्लोपन्‍मी पृूण साथ मास | ताखि मध्य जन्म लद॒लाम फरत्तियाम 7! 1




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