रामचन्द्रिका | Ramchandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रामचन्द्रिका भी कथावस्तु श्र
को तोडा है। तय परशुराम जी को अत्यन्त क्रोघ हुआ। अन्त
में स्वय महादेव जी ने आकर राम और परशुराम मे बीच बचाव
किया। तदुपरात रामचन्द्र ने यरात सहित अयोध्या की ओर
अस्थान क्या |
आठवाँ प्रकाश
दोहा -न्या प्रह्मश श्रष्टम कथा, अवध प्रवेश बखानि।
सौता घरन्यों तशरथहिं, और नघुज्नन मानि॥।
अयोध्या नगरी के सब स्थान अति शोभा से रजित हैं। जहाँ
तहाँ हृप सूचक चिह--तोरण, घन्दनयार, फदलीसभ अ्रादि--
चनाये गये हैं । नगर के मकाना पर पहुत ऊँची पताऊकाएँ फहरा
गही हैं । प्रत्येक फाटक पर आठ आठ रक्षक हैँ। गलियां अत्यन्त
सुदर, स्वच्छ एव धूल रहित हूँ । प्रत्येक गृह में घए्टों का शस्द
हो रहा है, बीच पीच मे शख ओर मालर भी यप रहे हैं । नगर
की स्लियाँ बगत को देखने के लिये मकानों की उच्चतम
अट्टालिकाआ पर चढ गइ हू। झटाती पर चढी हुई रित्रियाँ कोई
तो हाथ में दर्पण लिये हुए हैं । कोई स्था नोलाम्वर धारण किये
हुए मन का हृरण कर रही हे। कोई स्त्री अत्यन्त सु दर फूलों की
बषा कर रद्दी हे। कोई फत, फूल ओर लावा डाल रही है ।
रामचद्र जी भीड युक्त उस जन प़मूह में दाथी पर सवार होकर
मिकले। रामचद्र जी भरत का हाथ पकडे हुए राजद्रबार में
गये फिर वधू सद्दित राजकुमार कोशल्या के भवन गये। इस
समय आमोद प्रमोद-रत जनता याद्य बजा रही थी और दान
आटि न्यि जा रहे थे।
नवाँ प्रकाश
( अयोध्या काट )
दोहा >यई प्रकाश नवये क्या राम गवन नन ज्ञानि।
अनकनदिनी को मुझ्ृत, बरनन रूप बखानि॥
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