हिन्दी विपूवकोष भाग - 19 | Hindi Vipoovakosh Bhag - 19

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Book Image : हिन्दी विपूवकोष भाग - 19  - Hindi Vipoovakosh Bhag - 19

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' रक्तचन्दन दुसरे या तीसरे दिन उसमें जल देना दागा। जत्र यदद मूल टाकरीमें अच्छी तरह जष्ट पकड़ ले, तय उपयुक्त खेतों गडड़ा बना कर पक एक देकरो खतस्त्र स्थानों गाड़ दे । धोरे घोरे उसके सारवान द्वोनेसे गृहरुथ उसे काट डालने और वाजारमें बेचते हैं । धम्वई श्रशेशके वर्सों जिलेगें इसो तरद रफ्तचन्द्नको खेती द्वाती है। यह इृक्ष कमसे कम तोन वर्ष रहता हैं। पीछे उसे : काट कर धूपमें खुला लेते हैं। पतछो पतली जड़ छुखा कर २गके लिये बाजारों भेज्ञी आवो हैं। चैशानिकफो भाषामें रफ्तचरदनके छालवर्ण पदार्थका नज्ञाधवाए” कहते दैं। किसी पक्र पत्थर पर चत्दून- फाए घिसनेसे छालवर्णफा ले गाढ़ा पदार्थ निबालता है डसका लोग देवसूस्तिपूल्ा और तिलकादि धारणके छिये घ्यवहार करते हैं। इसके फाढ़ में खूतोी कपड़ा रंगाया जाता है। देशी तरल भऔपधादिको र'गानेफ़े लिपे यूरो- पीय ओऔषधागारमें इसक्वी काफी रफ्तनी द्वोती है। एतप्लिन्न उस देशमें घमडे और काप्टादिको संगानेके लिये रफ्तचन्दनका धहुल्ू प्रचार देखां ज्ञाता है। किसो स्यज्ञनादिका वर्ण और गंध बढ़ानेफे लिपे इसका ध्यवद्धार क्रिया ज्ञाता है। प्रादोन आयुर्वेदशा छर्मे ध्रोष्षएड या श्वेतचन्दन, पीतचन्दन और रफ्तचरदूनके गुणका द्वांल लिखा है। प्रथमाफ्त दे। चन्दनवृक्षका घैशामिक्न नाम 8ए/वापात शाएपा। हैं। चन्दन देखो | रफ्तचन्दून शौत्यगुणविशिष्ट दोनेके कारण छोाग श्वेतचच्दनक्की तरह सनानके घाद धिसा रफ्तचन्दन भी शरीरमें लेपते है.। सिर दर्द करनेसे रफ्तचन्द्न जरमें घिस कर कपाल पर ठग्राथे, दर्द फौरन दुर दो जआायगा। यह घारक़ गौर बल्यर् के दे । आआयुर्वेदीय चिकित्सक- गण आओपषधादिमें इसका प्रयोग करते हैं। सुसछमान दृकोमके मतसे पित्तत्लावर्मे श्वेतचन्दृन और रफ्तस्रावर्मे रफ्तचन्दूत व्यवद्वाय दै। मलमें पिच भौर रफ्त रहनेसे दोनों प्रकारके फा्कफे का का सेवन कराया जा सकता है। विलतैल (31784७-०ा)के साथ रफ्तन्द्न मिलता कर बहुतेरे स्वानके वाद शरीरमें छगाते हैं। उससे चर्मरोग नष्ट द्वीता है। ज्यर और रुफोटक प्रदादमें यद ज्याला- श्र को माश करना है। यद भांखिकी श्योतिको बढ़ाता और पसीना छाता है। छिड्ढकका कटा हुआ धमड़ा धोनेर्म चन्दयका घिसा जल वहुत उपकारी और उठा है। पुराने रफ्तामाशयमें इसके बीज्कोपक्रा काढ़ा धारक और वलकारक औपघरुपमें व्यवद्दार किया जाता हो । रासायनिक परीक्षासे देखा गया हो, कि इसमें सनन्‍्तलिक एसिड ( इदशारोर प्ल॑त ) हो । इधर, एल- काइदल भौर क्षारमिश्रित जलमें अथवा घने प्रसेटिक पएसिडमें उपत गंघनिर्यास (7९न1र्णत $प्रा)१घा९९-२ झतगा- धगाए ) निश्चेष करनेसे वद्‌ गठ जाता हो। अधाक्षित्त पदार्थ दानेदार तथा गंध झौर स्वादद्दीन दिता दो। विद्वेल (लत) साहवने चन्दनके इस वर्णद्दीन दामेका ($ 06 08 इस प्रकार रासायनिक विश्लेषण किया हो । रफ्तवन्दन काछमें इसका संयेग करनेसे हरिताम पक प्रकारका चूर पाया जाता दो। इसे पठाशके साथ गलानेसे 1९९5०:था नामक पदार्थ उत्पन्न द्वौता हो | रफ्तचस्नकी तरद्व एफ और भेंणोका चुक्ष ( 0866 ग्रध/ ९४0 90९9 ७६ ) देखा जाता द्दो। यद्द चड्भालमें रकाश्चन, रक्तकम्बल, रक्न और कभी कभो रक्तचन्दन मामसे वाजारमें विकता है। आंसाममें यह चन्दन नाप्तसे दी परिचित है। वाजारमें ठुकांवदार छोगोंको उगनेके लिये भसली रक्तचन्दनके बदे इसी काप्ठकों बेचते हैं । प्रमेद इतना ही है, कि इसके काएमें उतनी खुशबू नहीं हैं। बहुतेरे बव्यापारों चन्दनकाएके साथ इसे पक्र साथ मिला फर इसीलिये रण छोड़ते दैँ जिससे इसमें चन्दन सो गंध भा ज्ञाय । स्थानविश्ेयमें यह भो खतन्‍्ल नामसे परिचित है, जैसे--संधाली--बीर सुड्डूरा ; तामिल--अनैगुण्डुमणि, त्तेहमू-घन्दि शुर्देन्दा, पेह-गुरिजिन्दा; मलयो- छम--मज्ञाति; मराठो--चाल, थोलींगझ ; दाश्षिणात्य-- बड़ो ग्रमची, दृद्दोगुमरी ; फनाडी--मज्ञाड़ी ; सिंद्ली-- मद्तेय; मग--गुद्टू; अन्दामन--रेछेड़ा ; प्रह्म--यचेगी | बड्भाछ। दक्षिणभारत और प्रह्मदेशमें प्रायः सभो जगद यह बड़ा पेड़ उत्पन्न होता है | इसका निर्यास मद॒तिया! कहछांता है। यह क्राप साधारणतः रक्तचन्दन काप्ठके बदले प्यवष्टत दोता है। फमती कभी इसे रंगके काममें छातें हैं ।




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