आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ एक पुनर्मूल्यांकन | Aadhunik Kavya Pravratiyan Ek Punarmulyankan

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Book Image : आधुनिक काव्य प्रवृत्तियाँ एक पुनर्मूल्यांकन - Aadhunik Kavya Pravratiyan Ek Punarmulyankan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हायावाद | ३९ अवुरबाधित कर उस मा मरपण को अनुभूति थो सचा दी है जो छायावारी सूम आतर जावो को अधि यक्ति को भिमा के साथ प्रस्तुप करने मं समय सिद्ध हीतो है। बहना नहीं हणए कि छायावाद के पतर सम्बाधा तथा उसकी जअवुर्भूवि गैर अनिष्यक्ति के पक्षों वी सतती सूध्मता व संधथ बिसी जाय ले विवेचना नहा का । [९] भाव, भाषा और छन्द को मृक्ति श्री सूयगान्त द्विवाठी मिरादा ये छायाबाद वो विस्तृत विवचना नहीं वी शितु उसके एक प्रमुप और शक्तिशाजी तत्व वी जार सब्ेत पिया है कि वगभाषा भे रवीइनाप वी अवैदी शक्ति पीस वबिया का जावड तथा दद्धजाल देशर साहियब हल्य व द्र से निएती और फजी है । हिंदी मं छायावादी पहलान वाले कवियी से व्यशा थरारुणेण हजा है । जापरे यह भी स्वीयार किया है वि भावों वी मुक्ति छंद वो भी मुक्ति चाहती है । यहाँ (छावावाद मे) भाषा भाव भोौर छद तीनो स्वतन्ते हैं।' छावावाल के स्वरुप विप्रवेषण के 00 भ पहओ़ी दार निराला जी ने काब्य की मुक्त चेतना वे साथ मुत्त छाल या समवन क्या है जा दस वाब्य पवत्ति वी महती लिशवता जीर उपयो व भी है। [१०] नवीन मानवोय मूल्यों को रचना श्री सुमिन्नान टप पात ने तो शायावाद पुनमू ल्याउव शीपक से एक ब्राथ ही जि है । इमके अतिरिक्त भी आपने अपनी इृतियों दी लम्बा लम्बी भूमिकामो में छायाबाद व स्वरूप विश्लेषण पर पिशेष बज लिया है।णापत पृहयों बार इस कापय प्रवतति वे! व्यापर सास्क्रतिक राप्टीय परिवेश का उदघाटन बरत हुये उसे विश्य चेतना आर नयीत भानवीय मूल्यों वा प्रतिष्ठापव बहा है | छायावाद के प्रवर्तेय परिमोभाजा अरे से लउर समय सम्बंध मे प्रचवित सभी भ्रामत मा यताओ का भी आपने निष्ठा शौर दटता ते सएथ खप्डन कर हुसबः मृत्यावन को थिक्षाम भी नय मकेत लिय हैं | इम परिष्छेट म जगह जयह आपने इन बिक्ारा वो चचा डी गइ है । [११] स्वानुभूत सु्ष-दुसों की काव्य सृष्टि श्रामती महालेती वर्मा ये भी छावावाद की मूल ब्रद्ूति और उसकी विशेषताला पर विह्तार से विचार विया है। आपने पढ़ना बार इस साम वी उपयक्तदा वा स्वी भार करत हुये लिया हे कि उसके (छापावाट) जनम से प्रथम इवियाव- बाधन मोमा तय पहुँच चुप घ थी” उप पु ती सत्ति 4 बाह्यगार पर इंतवा थधिक लिखा जा युता ३ प्रबध पन्च विशाहा, प ३८ ३ प्रदाष प्रतिमा निराता यू २७०




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