संस्कृत सुष्मा की टीका | Sanskirt Sushma Ki Tika

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Sanskirt Sushma Ki Tika by सुगण चन्द शास्त्री -Suganchand Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है स्थित | अण्डजः--अण्डों से उत्पन्न होने वाले जीव, पक्षी । प्रतिनिनादितानि 'न्ल्प्रतिगुजित । अन्वय--मदनो, जृत्य प्रयोग रहितान्‌ शिखिनः विहाय, मधुरप्रमीतान्‌ इंसानुपैति । कुसुमोद्गमश्नीः कदुस्ब कुटजाजुन सर्जेनीयान्‌ू.. सुक्‍्त्वा सप्तच्छुदानुपगता । विपय-- शरद्‌ वर्णन है। प्राकृतिक शोभा का चित्र अथ--कामदेव नृत्य-क्रिया से रहित ( वर्षाकाल समाप्त हो जाने के कारण ) मयूरों को छोड़ कर मधुर गौतों घाले एंसों के पास श्रागया है ( आ जाता है )। पुष्प विकास की शोभा कद॒म्ब कुटज अज्ञन सर्जनीय, ना डकक इस श्रादि बृक्ष॒ विशेषों को छोड़ का सह्तच्छुदों ( बृक्षविशेषी ) के पास आगई है। १०, शेफालिका'* '*********'मनांप्ति पुसाम्‌ ॥ शब्दा्थ--परयनत न्‍ूचारों ओर (पास में)। नयनोत्पलानि न-मैत्र कमल | पुसाम्‌>पुरुषों के । प्रोत्कश्ठयन्ति +-विशेष उत्करिठत करते दें। भरनांसि >- मनों को । * चिपय-- प्राकृतिक शोभा और वन्य जीचों का वर्णन है । अन्यय--शेफालिका कछुसुमगनध मनोहराणि, स्वस्थस्थित्ाण्डजकुल प्रतिनादितानि, पयन्‍त संस्थित सूगीनयनोत्पलानि, उपचनानि पु'साम मनांसि प्रोस्कण्ठयन्दि | अर्थ--शेफालिका (फली का वृक्ष) के फूलों की सुगन्धि से मन को हरने वाले, स्वच्छुन्द्‌ स्थित पत्ती समूहों के कलरव से प्रतिग|जित, आसपास स्थित स्गियों के नयन रूपी कमलों वाले ( जिनसें झ्गियों के नयन कमप्तल से खिले दिखते हैं ), उपवन पुरुषों के मनों को उत्कण्ठित कर देते हैं ( किसी को याद में ) । ह कल्हारपत्र ४०%०७७०७७% ****»**विधयमानः । शुब्द|थु--कल्दार॒पत्न +- पुप्पविशेष | सुहुर यार यार | विधुन्चन्‌ ८ कंपाता हुआ । उपेत:८- प्रात्ष हुआ | अ्रतितरां >>अस्यन्त | पन्नान्त > पत्तों का अग्रभाग । तुदनाम्खु बफ है कण, ओसदब्िन्दु । विधूयसानः न विश्लेरताडुआ |




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