लोग जहां खड़े है | Log Jahan Khade Hain

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Log Jahan Khade Hain by अम्बिका दत्त - Ambika Datt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घड़ा का साकण्ड वाला सुई वन सप्मार होकर . शने: शर्न: मा पड़ाव डाल देती है मेरी पलकों के ऊपर और भौंहों की नीचे वाली जमीन पर मजबूर सा, मैं लेट जाता हूं एक ठण्डीो, सपा सोमेन्ट को काली पट्टी पर -+कि शभ्रवानक दूटता है जेहन में भेरे एक काॉँच का तारा चुभता है जुपता है कुछ, रंगीन किरव सा+- भेरे सिर के पिछले हिस्से में गहरी नींद में होने के बावजूद सोद सकता हूं, में हो नहो यह सुबह का सपना है | ' लोग जहाँ खड़े है।25




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