सुबह दोपहर शाम | Subah Dopahar Sham

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बढ़त बरेली हो गई थीं। बस में उसने मोचा ही नहों पा शि बड़ी दादी कमी जाएँगे भी । ५ अम्मा! मेरे पाम में बढ़ी ,दादी जैमी महक बातों है रे पसीविए हुम दुवाके पास बैंदार्तो हो 1 ठीक दात है न ? मन्तो ने मां मे पुछा था) वह जानती थी--पुजा डी बदी दादों बाली महूझू अर उसमे साने ख़री थी। हयेती का चन्दन दूसरे दित दक हस्का-हसका महइत्ा रहापा। हे “+हस रेल ने हमारा घर दिगाइ दिया : मां ने गहरी सांग सेरर दहा--मब बारह घाट हो गया ६ वहू हुआ चती गई “अम्मा शा शुछ पता नही “मे मासूम का खाती हैं, का पीडी हैं।” झोद उतने पैर ददादा है “बहतेलह्ते जमवन्त को मा फर्क एइकर रो पर्टी थी। मद शान्ता ने उन्हें पुरदिन वो तरह सम्भाता घा-- “ही अम्मा * नहीं। बड़ी दादी का तो मद बोई है'“सूरण '** पेड, पद ! उन्हें जब हमारी पाद बाएंगी नो मौद आएंगी । हम ही मो उन्हों के हैं अम्मा ! तुम रोती काहे को हो ? ““फिकर मे रोती हूं देदा । **“बहुती हुई वह उठी तो गोठरी दे हा में गुजरते हुए उन्होंने देखा--वाप-ेटे बोई बरूरी बाद गर रहे 1 ५ _हहबाव कि बहू को बहुत काम खूता है हुआ, उसदस्त के दापू बे मन में अदक गई पी--ओऔर यह भी कि गाडी बने को आहट से हो बहू दरबार पर खड़ी रहती है ओर जइ तड़ गाडी नहीं जाती -देवनी रहती 1 छ हैसी वाह को दाधू ने बहुत घुपाके जम मे पूछा था... पु पछास इंजन-जावू कैसा आदमी है ? उसको घरवानो हां, है! पर बोलता बाप दिन न्‍ जले हैं--पदौम कोम आना, पीस कोस गादी जे के जाना 1 नामक है?




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