श्री धरभाषा कोष | Shri Dharabhasa Kosh

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Shri Dharabhasa Kosh by केसरीदास सेठ - Kesaridas Seth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) व वयथारउत्नतः तर चतस्तरुूतः मय तीरम/नवास्तीस्स । राम!ये 1पिणावदतिररामस्प॑वेद्तिः यश दत्तरस नी तय जद त्तस्सनो ति 1177 पक्े७:यदिविसंगे से ४ 5 प्र परे हों तो विसगेको प्‌ आदेश हो जाता है । यथा- पनु लह्कारः-पनुएड्वारः । भग्नः ठहर मेरनएकुरः (का पपरक्प्पप्ठग ॥| धमादिः विसगेःसे परे /ब/छ) श हों ती। (1 ):की!श आदेश होता है | ४1४ भ्या-सूर्ण/चन्द्ृ/5पूर्णश्चरंद्रः// 1 रवेबछवि+खें रद विश भेसेशुइते- शाहिए मरश्शइतेगी! 7 317 # तंग कक हि मके लिए ध्रेदएप्रदि प्रदेके मध्य-में न॑ वाः मूँ/हो/तो उनको-अनुस्वार हीमिंती है जब * , कि मर्गोकि/मंथर्म द्वितीयं/ततीये बहुव और श+प से हं*परएहों तो । फिर रिथिग्यिशानसिटयशांसि/किंपू करोपिंटकिंकरोपि 18 कण ७७ ईिवशीव्यिदि पके अन्तर्मे)मः दोवे छत्से परे“ जनही तो म-कोंअनुस्वार आज होजातीहै। पधा-हरिस्‌ वन्दे८ह रिंवन्दे। चन्द्रमपश्यति-चैन्ट्रेपेश्याति॥ ४१ यदि अकार के नीचे विसंग' हो ओर विंसगे के परे हरेंत्र अंकी $ होने तो पारि 9 पूवे॥्रकार सहित विस को ओ-आार्देश होजाता ऐउसे अर में पर्व मैगी री कोंमिला देते।हैं)ओ से परे भकार का लोएकरकें ऐसी रूप लिख - - देते हैं बथा--बेदर अधीतः+-वेदो 5पीत: । नर 'अयमू-नरीपेम ॥ ॥$४! क्षद्ष थे? के परे बगेकी तृतीय! चतुर्थी हों थे मे! २) से) न, मे हों 4 एव की ” भो पनेमेतिं है? यथा चौ0 इरेति>सीरोहरति याविमरोयातिं। पौणडित-मेंवतिसपो एडितों मेवे दि “इसी दि ४३ यदि अर था को छोड़ किसी रबर से परे विंसगे हो और उत्तके परे कोई सर वा है, य। व र/(ल) लें/मे))वा)किसी वर्ग का ठवीय चतुर्थ वर्ण ऋन्‍्तुमही तो जिसमे की र[इल बनजाता है; ।यथा-कविः अग्रमू>क विर्यम््‌ । ता धंशहुभ हृत+शजुहतापह रे श्रंचनमू> हरे वे चनम्‌1 इत्यादि ७ 1३४४ यदि सिकऔर एप के परें शंका की छोड़ कोर स्वर वो व्यंजन वर्ण नाम होती में; और्ाएंपेः को बिंसगे कालीप हो जोवां है ओर!लोप होने 'शी० वरंसान्वि नहीं होती है। प्यास आगत३्स श्र गंत।| सं। इंच्छतिक 1र्नश्सकंछिए सि+करो विध्संकंरेति | स/ईसेतिन्सईसंतिंग एप: झा- + ,यातिरएप शँयोतिं | हवःशेतिएपरेत ईर्पादि 7 | । 1 अंदाष्यादि शलीक थी ऋ्ीका पीर मै चौयाई छू को हित सन हो जविमी ॥ ह 179 11 तक




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