राजर्षि | Rajarshi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छठा परिच्छेद । २५
रक्तघारा उसके विशाल खप्पर में आकर गिरती है। मैंने यदि
उस धारा में रक्त की एक और वूँद मिला दी तो क्या अनुचित
किया ? किसी न किसी समय ते अपनी बलि को वह लेती
ही है। मैं ते उसके बीच एक निमित्त-मात्र हुश्रा हूँ ।
तन जयसिह प्रतिमा की ओर देस कर कहने लगे--क्या
इसी लिए सब लोग तुमझा माँ कह फर पुकारते हैं। द्वाय,
छुम्हारा हृदय ऐसा कठोर है । तुमने ते! राक्षसियो फा भी माच
कर दिया । क्या सारे ससार का लोहू निचेड कर पेट भरने
दी फे लिए तुम प्रपनी चभ्वल जीभ को बाहर निकाले रहती
दे ? तुमने ते स्नेह, प्रेम,ममता, सौन्दर्य्य ँ्लौर धर्म सभी पर
पानी फेर दिया । तुम्हे तो बस बेहद लो।हू की प्यास मिटानी है ।
तुम्दारा द्वी पेट भरने के लिए मलुप्य मनुप्य के गले पर छुरी
फेरेगा, भाई भाई का सन करेगा, बाप बेटे परस्पर मार-क्राट
करेंगे । निष्ठुरे, सचमुच यदि तुम्हारी यद्दी इच्छा है
ते मेघ पानी के बदले लोहू क्यों नहीं वरसाता ? जीवन-
प्रदात्नी दयारूपिणी नदी रक्त का प्रवादद लेकर समुद्र में
क्यों नहीं प्रवेश करती ? तब इस ससार में एक मात्र द्विसा,
विद्वेप, महामारी आऔर विभीपिफा फा साम्राज्य क्यों नहीं हुआ
नहीं, नहीं, भां ! तुम प्रयक्ष द्वेज़र जयाय दे, यद्द उपदेश
मिथ्या दै।यद्द शात्ष असल ह।मेरीसां को माँन कद
कर लोग सनन््तान फा शोणित पीनेयाल्लो राक्यसी कद्दे--यह
बात मुझसे नहीं सद्दी जायगी--इतना कहते फहते जयसिद्द
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