बृहद द्रव्य संग्रह | Vrihad Dravya Sangrah

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Vrihad Dravya Sangrah by आचार्य श्री नेमीचन्द्र - Acharya Shri Nemichandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श्‌ : - मद राजचन्द्रजेनशास्षमालायाम्‌ केवलीणं तु 1१४” तद्यथा 'मूलसरीरमछंडिय उत्तरदेहरुस जीवपिंडस्स। णिग्गमर्ण देहादो हवदि समुग्धादयं णाम ॥१॥” तीज्रवेदनाहुभवान्मूड्शरीरमत्यक्त्वा आत्मप्रदेशानां वहि- निंगेमनमिति वेदनासमुद्भातः 1१ तीत्रकपायोदयान्मूलअरीर मत्यक्त्वा परस्य घाताथे पात्म- प्रदेशानां चहिग मनमिति कपायसमुद्धातः ।२। सूलशरारसएरित्यज्य किसपि विकतुमात्मप्र- देशानां बहिगंमनमिति विक्रियासमुद्भातः ।३। मरणान्तममये सूल्शरी रमपरित्यज्य यत्र कुत्नचिह्नद्धमायुस्तत्मदेश स्फुटितुमात्मप्रदेशानां वहिर्गमनमिति मारणान्तिकसमुद्रातः ४ स्वस्प मनोनिष्टजनक॑ किश्वित्कारणान्तरमवछोक्य समुत्यन्नक्रोधस्थ संयमनिधानस्य भमहासुनेमूलशरीरसत्यन्य सिन्दूरपुञ्लप्रभो दी्त्वेन द्वादशयोजनप्रमाणः सूच्यबुलूस- झथेयभागमूलविस्तारो नवयोजनाम्रविस्तारः काहडाकृतिपुरुषो वामस्कन्धान्निर्गत्य वा- _ मप्रदक्षिणिेन हृदये निहित विरुद्धं वस्तु भस्मसात्कृत्य तेनैव संयमिना सह स च भस्स ब्रजति द्वीपायनवत्तू, असावशुभस्तेज:समुद्धातः । छोक॑ व्याधिदुर्मिक्षादिपीडि- तमवलोक्य समुस्पन्नकपस्थ परमसंयमनिधानस्थ महनपेंमूलशरीरमत्यम्य शुशभ्राकृतिः प्रागुक्तदेह प्रसागः पुरुषो दक्षिणप्रदक्षिणेन व्याधिदुर्मिक्षादिकं स्फोटयित्वा पुनरपि कल पट हैं” सो ऐसे हैं कि “अपने मूल शरीरको न छोड़कर जो आत्माके प्रदेश देहसे निकलकर उत्तरदेहके प्रति गमन करते हैं उसको समुद्वात कइते हैं? इस सातों समुद्धातोंको ऋमसे दर्शाते हैं। जेसे-तीत्र वेदना ( पीडा ) के अनुभवसे मूल शरीरका त्याग न करके जो आत्माके अदेशोंका शरीरसे बाहर जाना सो वेदना समुद्धात है1 १। तथा तीच्र क्रोधादिक कपायोंके उदयसे मूल अर्थात्‌ धारण किये हुए शरीरको नछोड़कर जो आत्माके प्रदेश दूसरेको मारनेके ल्यि शरोरके वाहर जाते हैं उसको कपाय समुद्गात कहते हैं।२। किसी प्रकारकी विक्रिया (कामादिजनित विकार) उत्पन्न करने वा करानेके अर्थ मूल शरी- गको न त्यागकर जो आत्माके प्रदेशोंका बाहर जाना है उसको विकुत्रेणा अथवा विक्रिया समुद्बात फहते हैँ । ३। तथा मरणान्त समयमें मूल शरीरको न त्याग करके जहां-कट्दी इस आत्माने आयु बाधा है उसके स्प्शनेको जो प्रदेश्ञोंका शरीरप्ते बाह्य गमन करना सो मारणान्तिक समुद्धात है।४। अपने सनको अनिष्ट ( बुरा ) उत्पन्न करनेवाले क्रिसो कारणको देखकर उत्पन्न हुआ है क्रोध जिसके ऐसा जो संयमका बाम (वार्ये) कघेसे सिंदूरके ढेरकोसी क्रान्तिवाछा, वारह योजन लम्ब्रा,सूच्यंगुलके संख्येय भाग प्रमाण मूछ विस्तार और नव योजनके अप्र विस्तारको धारण करनेवाला काहलछ (विलाब) के आकारका धारक पुरुष निकछ करके वाम प्रदक्षिणा देकर मुनिके हृदयरमें स्थित जो विरुद्ध पदार्थे है उसको भस्म करके और उसी मुनिके साथ आप भी भस्म दोजाय; जसे द्वीपायन मुनिके शरीरसे पुततछा निकझुके द्वारिकाको भस्म कर उसीने द्वीपायन भुनिको समय कया के +5 उठा आप भी भस्म होगया, उसीकी तरहं जो हो सो अशुभ गैडस सुसुद्वात है। तथा जगनकों रोग अथवा दुसचिक्ष आदिसे पीढित देखकर उत्पत्र-हुई - का निधान महामुनि उसके




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