श्रीदैवीमीमांसा दर्शन | Shridevimimansaa Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रस पाद ! (१३५
““अथ” शब्द के उच्चारणमात्रही से मड़ल होता है क्योंकि
स्मृति में लिखा है कि “ओड्ार ओर श्रथ शब्द को]
श्रह्माजी का कए्ठ भेदन करके निकले हैं इस कारण ये
माड़ुलिक हैं”। # मड़लाचरण इसलिये किया जाता है कि
जिस के द्वारा पाप का नाश हो, जिस काये का प्रारम्भ
किया जाता है उस काये की निरविन्न परिसमाप्ति हो, शोर
शिष्टाचांरानुमोदित श्रति ओर स्मृति की तहिषयक श्राज्ञा
का परिपालन हो । क्योंकि श्रति में लिखा है कि ““समाप्ति-!
कामो मड़लमाचरेत” भ्रथांत् काये की निर्विन्न परिसमाप्ति
की इच्छा करनेवाला पुरुष मड़लाचरण करे |
“अथ” शब्द का आनन्तर्य अर्थ है श्र्थात निष्काम
कमोदि के दारा चित्तशुदिः के अनन्तरही भाक्के विषयक
जिज्ञासा करने का अधिकार प्राप्त होता है । “अतः” शब्द
का हेत॒ शर्थ है क्योंकि भक्तिही जब उपासना का मूल है
तो भक्ति के विषय में जिज्ञासा कत्तेव्यही है ॥ १॥
भक्षि-जिज्ञासा-विषय में पहले जानने योग्य कौन
पदार्थ है-
परमात्मा रसरूप ओर माया जड़रूपा हे ॥ २४
- परमात्मा रसरूप अथोत् आनन्दरूप हे । श्रति में भी
हब अपन मर किन नकल कप ++ मम लक:
# ओडारश्चायशब्दरच द्वावेतों बह्मरः पुरा | ४
कण भिक्ता विनियाता तेन भाइलिकाबुभों ॥
रसरूपः 'परमात्मा, जड़रूपा माया ॥२॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...